2050 तक नदीयों व समुद्रों में मछलियां कम और प्लास्टिक का कचरा होगा ज्यादा

ज्ञानेंद्र सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। कभी न गलने व नष्ट होने वाले प्लास्टिक का कचरा अब लोगों के स्वास्थ्य के लिए घातक बनता जा रहा है। प्लास्टिक कचरे से माइक्रो प्लास्टिक नामक छोटे-छोटे विषैले कण पैदा हुए हैं जो वायुमंडल एवं पानी में घुल मिल चुके हैं। 2020 तक भारत को प्लास्टिक कचरे से …
ज्ञानेंद्र सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। कभी न गलने व नष्ट होने वाले प्लास्टिक का कचरा अब लोगों के स्वास्थ्य के लिए घातक बनता जा रहा है। प्लास्टिक कचरे से माइक्रो प्लास्टिक नामक छोटे-छोटे विषैले कण पैदा हुए हैं जो वायुमंडल एवं पानी में घुल मिल चुके हैं।
2020 तक भारत को प्लास्टिक कचरे से बचाने के लिए एक महत्वकांक्षी योजना बनी थी। मगर प्लास्टिक उपयोग की मात्रा बढ़ती जा रही है।
भारत में पहले प्रति एक व्यक्ति 11 किलो प्लास्टिक प्रयोग करता था वह 2020 तक 9 किलो बढ़ जाएगी। जिसके चलते विश्व की नदियों और समुद्रों में प्रतिवर्ष 60 लाख टन प्लास्टिक कचरा बहाया जा रहा है। इस समय 40 देशों पर प्लास्टिक पूरी तरह प्रतिबंधित है। भारत में भी पर्यावरण मंत्रालय और कुछ एजेंसियों ने मिलकर योजना बनाई थी। जिसके तहत प्लास्टिक के प्रयोग को कम करना था, मगर ठोस विकल्प न होने के कारण प्लास्टिक का प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है।
एक सर्वे के मुताबिक बड़े शहरों में कुछ लोगों ने कागज के थैले प्रयोग किए हैं मगर उसके अनुपात में प्लास्टिक की थैलियों का चलन और ज्यादा बढ़ गया। सबसे ज्यादा चुनौती तरल व खाद्य पदार्थों के पाउच जैसे पानी की थैलियां और बोतलें बनती जा रही हैं।
2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्लास्टिक कचरे के रूप में 50 हजार अरब टुकड़े इस समय समुद्र तल पर है थे। यही टुकड़े कुछ समय बाद माइक्रो प्लास्टिक में तब्दील हो जाते हैं वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्र तल पर तैरने वाला यह पूरे प्लास्टिक कचरें का सिर्फ एक फीसद हिस्सा है। 99 फीसद कचरा समुद्री जीव जंतुओं के पेट में जा रहा है या फिर समुद्री तलों में फंसा हुआ हुआ है।
वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि यदि राष्ट्रीय के प्रयोग पर पाबंदी ना लगाई गई और उसके कचरे का ठोस समाधान नहीं निकाला गया तो सन 2050 तक नदियों और समुद्रों में मछलियों से ज्यादा पान प्लास्टिक के विषैले कचरे होंगे।
सीवर व गंदे नालों के माध्यम से प्लास्टिक कचरा नदियों व समुद्रों में बहाया जाता है। कुछ समय बाद यही प्लास्टिक कचरा माइक्रो प्लास्टिक के छोटे-छोटे कणों में तब्दील हो जाता है। ग्रीन पीस के सर्वे के मुताबिक नदियों का पानी जब नलों में आपूर्ति किया जाता है तो उसमें माइक्रो प्लास्टिक के अति सूक्ष्म कण घरों में चले जाते है और मानव स्वास्थ्य को कई तरह से प्रभावित करते है।
बायोलॉजी लेटर्स नामक साइंस जर्नल के मुताबिक मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव जंतुओं में भी माइक्रो प्लास्टिक के कण मिल रहे हैं। इतना ही नहीं खेतों की जमीन को भी प्लास्टिक कचरा नष्ट कर रहा है। क्योंकि पेट्रो रसायनो से प्लास्टिक का निर्माण किया जाता है। जो जलाने पर विषैली गैस और मिट्टी में दबाने पर कृषि भूमि को खराब कर रहे हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक प्लास्टिक में 10 हजार से ज्यादा रसायन होते हैं। जिसमें दो हजार से ज्यादा रसायन बहुत ज्यादा खतरनाक है और वायुमंडल एवं पानी में मिलने से स्वास्थ्य व पर्यावरण को खराब कर रहे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक केंद्र सरकार ने जो योजना बनाई थी उसके विफल का सबसे बड़ा कारण है कि प्लास्टिक का कोई ठोस विकल्प अभी तक नहीं दिया गया है। जिसकी वजह से प्लास्टिक घटने के बजाय और बढ़ रही है।