कानून में संशोधन के बाद अनुसूचित जाति व जनजाति के उत्पीड़न के मामले बढ़े

कानून में संशोधन के बाद अनुसूचित जाति व जनजाति के उत्पीड़न के मामले बढ़े

संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। कानून में संशोधन के बाद देश में अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों के खिलाफ अत्याचार व उत्पीड़न के मामलों के साथ-साथ अंतरजातीय विवाहों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को दबंगों के अत्याचार के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने के लिए भारत …

संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। कानून में संशोधन के बाद देश में अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों के खिलाफ अत्याचार व उत्पीड़न के मामलों के साथ-साथ अंतरजातीय विवाहों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को दबंगों के अत्याचार के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने 1990 में अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार प्रतिषेध) अधिनियम बनाया था। मोदी सरकार ने बेहतर न्याय का भरोसा देते हुए पहले 2015 तथा पुनः 2018 में इसमें संशोधन कर इसके नियम भी बदल दिए।

पहले संशोधन के तहत जहां एक तरफ उत्पीड़न का शिकार व्यक्ति को सरकार से मिलने वाली मुआवजे की राशि को 20,000-80,000 रुपये से बढ़ाकर 85,000-8,25,000 रुपये कर दिया गया। वहीं दूसरी ओर अवांछित मामलों में मुआवजे पर रोक लगा दी। दूसरे संशोधन में ये प्रावधान कर दिया गया कि आइपीसी की धारा 438 के प्रावधान इस कानून पर लागू नहीं होंगे। यानी उत्पीड़न की एफआइआर दर्ज होते ही पहले आरोपी की गिरफ्तारी होगी और उसके बाद जांच होगी।

इन संशोधनों का नतीजा ये हुआ है कि अनुसूचित जाति व जनजाति (अजा एवं अजजा) के लोगों, विशेषकर महिलाओं के विरुद्ध दर्ज मामलों में बढ़ोतरी हो गई है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां 2015 में देश में अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों के प्रति अत्याचार व उत्पीड़न के 44,839 मामले तथा 2016 में 47,338 मामले दर्ज हुए थे। वहीं, उसके बाद मामले बढ़ गए हैं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2017 में अजा व अजजा से संबंधित लोगों के उत्पीड़न व अत्याचार के 50,094 मामले दर्ज कराए गए। यही नहीं, उसके बाद 2018 में 44,505 तथा 2019 में 49,600 मामलों का सबसे बड़ा रिकॉर्ड सामने आया है। यदि उत्तर प्रदेश को लें तो यहां 2015 में अजा-अजजा पर अत्याचार व उत्पीड़न के 8363 मामले दर्ज हुए थे। लेकिन 1217 में इनकी संख्या 11,320 हो गई।

इसी तरह वर्ष 2018 में 9,458 जबकि 2019 में 10,156 मामले दर्ज हुए। आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तराखंड में संशोधन के बाद भी शिकायतें कुछ कम हुई हैं। लेकिन बिहार, हरियाणा, असम, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल आदि में शिकायतों में काफी इजाफा हुआ है।

वैसे अजा-जजा के उत्पीड़न की घटनाओं में इजाफा होने के पीछे सामाजिक ढांचे में हो रहा बदलाव भी हैं। जिसके चलते अगड़ी जाति के युवक-युवतियां पिछड़ी जाति के युवक-युवतियों से न केवल मेलजोल बढ़ा रहे हैं, बल्कि विवाह के बंधन में बंधने का प्रयास भी कर रहे हैं। इसका प्रमाण ये है कि जहां पिछले पांच सालों में देश में अजा-जजा के उत्पीड़न की कुल 2.34 लाख घटनाएं दर्ज की गईं। वहीं 2016-17 में हुए 17,263 अंतरजातीय विवाहों के मुकाबले 2017-18 में 20,253 तथा 2019-20 में 23,355 अंतरजातीय विवाह दर्ज किए गए।