छलांग मारकर उड़ती चिड़िया को पकड़ने वाला ये जीव हुआ दुर्लभ, दो दशक पहले आया था नजर
पन्ना। बाघों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में बिल्ली प्रजाति का अनोखा जीव स्याहगोश भी पाया जाता था। दो दशक पूर्व जिले के गंगऊ अभयारण्य के जंगल में इस दुर्लभ वन्य जीव को अंतिम बार देखा गया था। लेकिन बीते 20 वर्षों से ऊंची छलांग मारकर उड़ती हुई चिड़िया को झपट लेने वाला …
पन्ना। बाघों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में बिल्ली प्रजाति का अनोखा जीव स्याहगोश भी पाया जाता था। दो दशक पूर्व जिले के गंगऊ अभयारण्य के जंगल में इस दुर्लभ वन्य जीव को अंतिम बार देखा गया था। लेकिन बीते 20 वर्षों से ऊंची छलांग मारकर उड़ती हुई चिड़िया को झपट लेने वाला यह स्याहगोश नजर नहीं आया।
इससे यह आशंका जताई जा रही है कि भारत से विलुप्त हो चुके चीता की तरह यह शानदार वन्यजीव भी कहीं तस्वीरों में ही सिमट कर न रह जाये। स्याहगोश प्राणी जगत के कोर्डेटा संघ के मेमेलिया वर्ग से संबंधित कोर्निवोरा व फेलिडी परिवार का वन बिलाव है, जो प्राणी शास्त्र में फेलिस काराकल नाम से जाना जाता है। इसकी पहचान इसके काले कानों से होती है। फारसी भाषा में स्याह का अर्थ है काला और गोश का अर्थ कान होता है। इसी वजह से इसका नाम स्याहगोश पड़ा है।
स्याहगोश की कंधों तक ऊंचाई 16 से 20 इंच, शरीर की लंबाई लगभग 31 इंच व दुम की लंबाई 10 से 13 इंच होती है। नर का वजन 12 से 18 किलोग्राम तथा मादा का वजन 8 से 13 किलोग्राम होता है। इनके कान बड़े और सीधे खड़े होते हैं जिन पर काले बालों का गुच्छा होता है। चीता की तरह तेज रफ्तार से दौड़ने वाला स्याहगोश हवा में 12 से 15 फीट ऊंची छलांग लगाकर उड़ते परिंदों को भी झपट लेता है। यह चीते की तरह कुछ ही सेकंड में 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार भी पकड़ लेता है।
यह घास के मैदानों, झाड़ियों और छोटे पेड़ों वाले खुले क्षेत्रों और पठारों में पाया जाता है। छोटे आकार का यह वन्यजीव पर्यावरण संतुलन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले छोटे प्राणियों और पक्षियों को यह नियंत्रित रखता है, इस लिहाज से यह किसानों का मित्र है।
वर्ष 2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व जब बाघ विहीन हो गया था, उस समय राष्ट्रीय स्तर पर खूब हो-हल्ला मचा। यहां के जंगल से बाघ कैसे और किन परिस्थितियों में विलुप्त हुए इसकी तहकीकात भी हुई। इतना ही नहीं यहां पर बाघों के उजड़े संसार को फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई। परिणाम स्वरूप पन्ना का जंगल एक बार फिर बाघों से आबाद हो गया। लेकिन बिल्ली प्रजाति के ही शानदार वन्यजीव स्याहगोश के मामले में न तो हो-हल्ला हुआ और ना ही इस अनोखे वन्य प्राणी को फिर से आबाद करने व उसके संरक्षण के लिए कोई कारगर प्रयास हुये।
इस इकोसिस्टम में हर जीव एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। इसी से खाद्य श्रंखला निर्मित होती है, इस श्रंखला में किसी भी जीव की गैरमौजूदगी से असंतुलन पैदा होता है। जिसका प्रभाव समूचे इकोसिस्टम पर पड़ता है। फिर भी स्याहगोश जैसे वन्य प्राणी के यहां के जंगलों में नजर न आने की वजह क्या है, क्या यह यहां से विलुप्त हो चुका है। इसकी कोई खोज खबर नहीं ली गयी। यदि स्याहगोश पन्ना के जंगलों से विलुप्त हो गया है तो बाघों की तरह उन्हें यहां क्या फिर से आबाद नहीं किया जा सकता।
अभिलेखों से यह पता चलता है कि 80 के दशक तक स्याहगोश या काराकल राजस्थान के अलावा गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के शुष्क क्षेत्रों में बहुतायत में पाये जाते थे। मध्यप्रदेश में तकरीबन 20 वर्ष पूर्व इसे पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल में देखा गया था। पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन द्वारा प्रकाशित कराये गये पुराने फ़ोल्डरों में स्याहगोश की यहां पर मौजूदगी का बकायदे जिक्र है, लेकिन अब इस वन्य प्राणी की कोई चर्चा नहीं होती। कई जगह पढ़ने को यह जरूर मिला है कि सरिस्का व रणथंभौर टाइगर रिजर्व में स्याहगोश के होने की पुष्टि हुई है। लेकिन अन्य दूसरे राज्यों से तो यह लगभग विलुप्त हो चुका है।