‘मकर संक्रांति’ पर दान और गंगा स्नान का है विशेष महत्व, जानिए क्या है मान्यता

‘मकर संक्रांति’ पर दान और गंगा स्नान का है विशेष महत्व, जानिए क्या है मान्यता

नई दिल्ली। देश भर में मकर संक्रांति का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज के दिन से सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने की शुरुआत होती हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के समय को शुभ माना जाता है और मांगलिक कार्य आसानी से किए जाते हैं। पृथ्वी दो गोलार्द्धों में …

नई दिल्ली। देश भर में मकर संक्रांति का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज के दिन से सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने की शुरुआत होती हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के समय को शुभ माना जाता है और मांगलिक कार्य आसानी से किए जाते हैं। पृथ्वी दो गोलार्द्धों में बंटी हुई है ऐसे में जब सूर्य का झुकाव दाक्षिणी गोलार्द्ध की ओर होता है तो इस स्थिति को दक्षिणायन और सूर्य जब उत्तरी गोलार्द्ध की ओर होता है तो इस स्थिति को उत्तरायण कहते हैं। साथ ही 12 राशियां होती हैं जिनमें सूर्य पूरे साल एक-एक माह के लिए रहते हैं। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं।

मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, तप, जप, तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है। शास्त्रों के अनुसार इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है। इस त्योहार का संबंध केवल धर्मिक ही नहीं है बल्कि इसका संबंध ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। इस दिन से दिन एंव रात दोनों बराबर होते है। मान्यता है कि मकर संक्रांति वाले दिन लोगों के गंगा में डुबकी लगाने और दान करने से लोगों को सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है और इंसान को जीवन में सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। डुबकी लगाने वालों में पुरुषों के साथ महिलायें और बच्चे भी शामिल हैं।

विभिन्न गंगा घाटों पर श्रद्धालु हर-हर गंगे का उच्चारण करते हुए नदी में डुबकी लगाकर भगवान भाष्कर की पूजा कर रहे हैं। साथ ही ब्राह्मणों को चूडा, गुड़ और तिल का दान किया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन तिल से बनी सामग्री ग्रहण करने से कष्टदायक ग्रहों से छुटकारा मिलता है। देश भर में श्रद्धालु गंगा सहित अन्‍य नदी घाटों पर स्‍नान कर मंदिरों में पूजा कर तिल से बनी वस्तुओं का दान कर रहे हैं।

मकर संक्रांति पिता-पुत्र का पर्व
मकर संक्रांति को पिता-पुत्र के पर्व के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन पुत्र और पिता को तिलक लगाकर उनका स्वागत करना चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि में प्रवेश करते हैं और दो माह तक रहते हैं। मकर संक्रांति से कई कथाएं भी जुड़ी हैं। इस द‌िन गंगा स्नान का महत्व उस समय से माना जाता है जब पहली पर गंगा पृथ्वी पर आई और महाराज भग‌ीरथ के पीछे-पीछे चलते हुए कप‌िल मुन‌ि के आश्रम में सगर के पुत्रों का उद्धार क‌िया और सागर से म‌िल गई।

मकर संक्रांति पर क्यों उड़ाई जाती है पतंग ?
भारत में मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का अलग महत्व हैं। धार्मिक महत्व की बात करें तो इसका संबंध भगवान राम से बताया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम ने मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की शुरुआत की थी। सूर्य के उत्तरायण होने की शुरुआत के स्वागत में मनाये जाने वाले पर्व मकर संक्रांति के दिन उमंग, उत्साह और मस्ती का प्रतीक पतंग उड़ाने की लंबे समय से चली आ रही परंपरा मौजूदा दौर में काफी बदलाव के बाद भी बरकरार है। इस दिन पतंगबाजी करते लोगों का उत्साह देखते ही बन रहा है। लोग सुबह से ही चूड़ा-दही खाने के बाद अपने घर की छतों पर चले गये और पंतगबाजी का आनंद ले रहे हैं। यूं तो बाजार में किस्‍म-किस्‍म के पतंगों की बिक्री हो रही है। लेकिन सबसे अधिक बिक्री प्रधानमंत्री मोदी के नाम और उनके चित्र वाली पतंग की हो रही है।

गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व
ज्योतिष विद्वान आचार्य राकेश झा ने बताया कि मकर संक्रांति पर गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इसके साथ ही सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण हो जाएंगे और खरमास समाप्त हो जाएगा और विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, सगाई जैसे मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि इस दिन भगवान सूर्यदेव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात के तौर पर माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दान, तप, जप, आदि का अत्यधिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि गुरुवार को खिचड़ी खाने से दरिद्रता आती है, लेकिन विशेष मुहूर्त या अवसरों पर यह मान्यता लागू नहीं होती है , इसीलिए 14 जनवरी को गुरुवार होने के बावजूद श्रद्धालु खिचड़ी ग्रहण करेंगे। सूर्य के उत्तरायण होने से मनुष्य की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

प्रिय वस्तु दान करने से बरसती है सूर्य की कृपा
पंडित झा ने बताया कि भगवान सूर्य शनिदेव के पिता हैं। सूर्य और शनि दोनों ही ग्रह पराक्रमी हैं। ऐसे में जब सूर्य देव मकर राशि में आते हैं तो शनि की प्रिय वस्तुओं के दान से भक्तों पर सूर्य की कृपा बरसती है। साथ ही मान-सम्मान में बढ़ोतरी होती है। मकर संक्रांति के दिन तिल निर्मित वस्तुओं का दान शनिदेव की विशेष कृपा को घर परिवार में लाता है। मकर संक्रांति के दिन मकर राशि में एक साथ पांच ग्रह विराजमान रहेंगे। सूर्य, चंद्र, बुध, गुरु एव शनि इन सबकी मौजूदगी से शुभ योग का निर्माण हो रहा है। इस दिन दान-पुण्य, गंगा स्नान, पूजा-पाठ, गरीबों की सेवा आदि धार्मिक कार्य करने से इसका कई गुना फल प्राप्त होगा। इस दिन सूर्य को जल में रोली, गुड़, तिल मिलाकर अर्घ्य देने से रोग, शोक दूर तथा स्वास्थ्य लाभ, प्रखर बुद्धि, ऐश्वर्य, मुख मंडल पर तेज का निखार होता है।मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है।

पांच ग्रह एक राशि में करेंगे भ्रमण
वैदिक शोध एवं सांस्कृतिक प्रतिष्ठान कर्मकाण्ड प्रशिक्षण केन्द्र के पूर्व आचार्य डा. आत्माराम गौतम ने बताया कि वर्षों बाद मकर संक्रांति के अवसर पर पांच ग्रह एक राशि में भ्रमण करेंगे। ग्रह नक्षत्रों की विशेष जुगलबंदी से स्नान पर्व का महत्व बढ़ गया है। उन्होंने बताया कि पौष शुक्लपक्ष प्रतिपदा तिथि गुरूवार को सुबह नौ बजकर 36 मिनट तक रहेगी। इसके बाद द्वितिया तिथि लग जाएगी। सूर्य दिन में दो बजकर 37 मिनट से धनु से मकर राशि में प्रवेश करके दक्षिणायन से उत्तरायण होंगे। उन्होंने बताया कि गुरूवार का दिन श्रवण नक्षत्र में सूर्य के प्रवेश होने ब्रज योग दुर्लभ संयोग बन रहा है। धर्म सिंधु और निर्णय सिंधु में कहा गया है कि एक राशि में चार या पांच ग्रहों के एकत्र होने पर अमृत योग बनता है। ऐसी स्थिति में संगम स्नान करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति में स्नान के बाद काला तिल, कंबल, घी आदि का दान किया जाना श्रेष्ठकर माना जाता है।

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