Bareilly: भाजपा का मिशन 2027... कायम रखे पुराने जातिगत समीकरण !

बरेली, अमृत विचार। भाजपा ने बरेली, आंवला और महानगर समेत तीनों संगठनात्मक जिलों में पुराने जातिगत समीकरण कायम रखे। जीआईसी ऑडिटोरियम में नामों के एलान से पहले चुनाव पर्यवेक्षक नरेंद्र कश्यप ने स्पष्ट किया कि 2027 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए जिलाध्यक्षों के चयन में सामाजिक संतुलन काे प्राथमिकता दी गई है। कहा, शीर्ष नेतृत्व के गहन मंथन के साथ जिलाध्यक्षों के बारे में जनप्रतिनिधियों के साथ भी चर्चा की गई। इसके बाद नामों पर मुहर लगाई गई। गन्ना राज्यमंत्री संजय गंगवार ने कहा कि भाजपा ही ऐसी पार्टी है जहां सभी कार्यकर्ताओं को मौका मिलता है। वनमंत्री डॉ. अरुण कुमार ने नवनियुक्त जिलाध्यक्षों को शुभकामनाएं दीं।
भाजपा के नए जिलाध्यक्षों के चयन में इस बार पार्टी के ही जनप्रतिनिधियों में जिस कदर जोर आजमाइश हुई, वैसी पहले कभी नहीं हुई। सबसे ज्यादा घमासान महानगर अध्यक्ष पद के लिए हुआ जिसके लिए तमाम पूर्व और मौजूदा पदाधिकारियों ने दावा ठोका था, लेकिन राजनीति के ये खिलाड़ी आपस में ही शह और मात के शिकार हो गए। नतीजा यह है कि जिलाध्यक्षों की घोषणा के साथ पार्टी में गुटबाजी की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। कहा जा रहा है कि आने वाले समय में ये गुटबाजी खुले विरोध के तौर पर भी सामने आ सकती है।
महानगर अध्यक्ष पद के लिए पूर्व अध्यक्ष पुष्पेंदु शर्मा, पूर्व अध्यक्ष केएम अरोड़ा, पूर्व महामंत्री यतिन भाटिया और मौजूदा महानगर संगठन महामंत्री प्रभुदयाल लोधी, विष्णु शर्मा, विष्णु अग्रवाल, देवेंद्र जोशी समेत कई पूर्व और मौजूदा पदाधिकारियों ने आवेदन किया था लेकिन संगठन ने इनमें से किसी पर भरोसा नहीं जताया। एक पूर्व अध्यक्ष के लिए तो उच्चस्तरीय सिफारिश भी की गई लेकिन उसे नजरंदाज कर दिया गया। इसके बजाय अधीर सक्सेना को एक जनप्रतिनिधि का ऐसा सपोर्ट मिला कि फिर अध्यक्ष की कुर्सी हाथ आ गई।
जोर शोर से गूंजा था राजकुमार शर्मा का नाम
बरेली जिलाध्यक्ष पद के लिए पूर्व जिलाध्यक्ष राजकुमार शर्मा का नाम जोरशोर से गूंजा था। उनकी दावेदारी भी मजबूत मानी गई थी। वर्तमान महामंत्री वीरपाल गंगवार भी जिलाध्यक्ष बनने की लाइन में थे, लेकिन संगठन ने सोमपाल शर्मा पर दांव खेला। आंवला के जिलाध्यक्ष पद पर आदेश प्रताप सिंह का नाम शुरू से चल रहा था। उनकी राह में शुरूआत से कोई रुकावट नहीं थी।
महानगर में एक जनप्रतिनिधि की पलटी से बदला खेल
बरेली महानगर अध्यक्ष का पद अपने करीबी को दिलाने के लिए कई जनप्रतिनिधियों ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था। एक-दूसरे के धुरविरोधी माने जाने वाले दो जनप्रतिनिधि अपने करीबियों को अध्यक्ष बनाने के लिए जीजान से जुटे थे, लेकिन ऐन वक्त पर एक जनप्रतिनिधि दूसरे पर भारी पड़ा। कहा जा रहा है कि जिलाध्यक्ष के नामों की घोषणा में कई विधायकों की एक नहीं चली। इससे जिलाध्यक्षों की घोषणा के साथ ही गुटबाजी की चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं। एक पूर्व जिलाध्यक्ष ने साफ कहा कि एक जनप्रतिनिधि ने अपने फायदे के लिए अंतिम समय में दूसरे काे अध्यक्ष बनाने की पैरवी की थी। पार्टी की कमान सही हाथों में जाती तो अफसोस नहीं होता। आने वाले समय में विरोध के स्वर जरूर फूटेंगे।