शाहजहांपुर: गैर इरादतन हत्या में अधिवक्ता को आजीवन और दो को पांच-पांच वर्ष की सजा, जानें मामला

शाहजहांपुर, अमृत विचार: अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश दशम् के न्यायाधीश पंकज कुमार श्रीवास्तव ने गैर इरादतन हत्या के मामले में एक दोषी को आजीवन कारावास और इसी मामले में दो लोगों को पांच-पांच वर्ष के कारावास की सजा और अर्थ दंड से दंडित किया है।
थाना जलालाबाद के गांव कोना याकूबपुर निवासी भोले सिंह ने 18 जनवरी 2008 को जलालाबाद थाने में दर्ज कराई गई प्रथम सूचना रिपोर्ट में बताया कि उसका भाई शिवनारायण 28 मार्च 2007 को घर में खाना खा रहा था। शाम करीब सात बजे गांव के ही अधिवक्ता साधु खान पुत्र लल्लू खान और लल्लू खान पुत्र सूबेदार व नबाब अली पुत्र सूबेदार और सफर मोहम्मद दरवाजे पर आ गए।
सभी ने उसके भाई शिवनारायण को बुलाया, इस पर शिवनारायण की पत्नी मीरा देवी, बेटे अर्जुन ने पूछा कहां ले जाओगे, तभी साधु ने कहा कि अपने घर बुलाकर ले जा रहा हूं। पुराने झगड़े के फैसले पर बात करनी है।भोले ने बताया कि भाभी मीरा देवी ने विश्वास कर लिया, क्योंकि मीरा की शादी साधु ने शिवनारायण से कराई थी। इसके बाद आरोपी शिवनारायण को अपने साथ लेकर चले गए।
काफी देर तक घर नहीं लौटने पर मीरा ने अपने देवर भोले सिंह को आरोपियों के घर देखने जाने के लिए भेजा। भोले सिंह अपने भतीजे अर्जुन के साथ आरोपियों के घर पहुंचा और भाई शिवनारायण को आवाज लगाई, इस पर साधु खान और नबाब अली ने कहा कि हम लोग शराब पी रहे हैं, थोड़ी देर में आ जाएंगे, चिंता की कोई बात नहीं।अंधेरा हो चुका था, कुछ देर इंतजार करने के बाद वह अपने भतीजे अर्जुन और भाभी मीरा के साथ साधु के घर गया और पता किया तो साधु के घर की औरतों ने जवाब दिया कि हमे नहीं मालुम की शराब पीकर सभी लोग कहां गए हैं।
तब फिर टॉर्च की रोशनी में भाई को तलाश करना शुरू किया। गांव के पूरब तालाब के किनारे आरोपी भाई के हाथ-पैर पकड़ कर लटकाए तालाब की तरफ लिए जा रहे थे। टॉर्च की रोशनी डालने पर आरोपी भाई को अचेत अवस्था में डालकर भाग गए। डॉक्टर को बुलाकर दिखाया तो पता चला कि शिवनारायण की मौत हो चुकी है। रात में ही थाने पर तहरीर दी लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की।
पोस्टमार्टम के बाद भोले सिंह फिर थाने गया लेकिन पुलिस ने नामजद लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की। तब फिर कोर्ट की शरण ली और पुरानी रंजिश का हवाला दिया, इस पर कोर्ट ने मामले की रिपोर्ट दर्ज कर विवेचना के आदेश दिए। रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने विवेचना के उपरांत नामजद लोगों के खिलाफ आरोप पत्र कोर्ट में प्रेषित किए।
कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई के दौरान गवाहों के बयान और शासकीय अधिवक्ता श्रीपाल वर्मा के तर्को को सुनने के बाद पत्रावली का अवलोकन कर दोष सिद्ध होने पर साधु खान को आजीवन कारावास और एक लाख रुपये के अर्थदंड से दंडित किया। जबकि लल्लू खान व नबाब अली को पांच-पांच वर्ष के कारावास की सजा और अर्थदंड से दंडित किया है। वहीं चौथे अभियुक्त सफर मोहम्मद की मुकदमा विचारण के दौरान मृत्यु हो गई।
इसलिए साधु को माना गया सबसे बड़ा दोषी
कोर्ट ने साधु को आजीवन कारावास की सजा से दंडित करते हुए टिप्पणी की कि साधु खान पेशे से अधिवक्ता है और वह वर्ष 2005 से वकालत भी कर रहे हैं। घटना वर्ष 2007 में हुई। एक अधिवक्ता होने के बावजूद किसी अपराध में शामिल होना या स्वयं किसी अपराध को करना अपने आप में बड़ा अपराध है क्योंकि अधिवक्ता समाज का वह पढ़ा-लिखा तबका है जो गरीबों, मजदूरों व सताए हुए लोगों को रास्ता दिखाता है और उन्हें अत्याचारी लोगों से बचाता है।
जब एक अधिवक्ता स्वयं ही अपराध करने लगे तो ऐसे अधिवक्ता से क्या अपेक्षा की जाए। समय-समय पर अधिवक्ताओं ने समाज को नई दिशा दी है। देश को स्वतंत्रता दिलाने में भी अधिवक्ता वर्ग का बहुत बड़ा योगदान रहा है लेकिन यदि साधु खान जैसे वकील समाज में रहेंगे तो फिर एक अधिवक्ता और एक अत्याचार करने वाले में क्या फर्क रह जाएगा। इसलिए यह अपराध क्षम्य नहीं है।
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