जागेश्वर धाम: अलौकिक शक्ति और आस्था का नजारा

अल्मोड़ा, अमृत विचार: अलौकिक शक्ति और आस्था का नजारा अगर कहीं देखने को मिलता है तो वो जगह है, उत्तराखंड का जागेश्वर धाम। यहीं वो जगह हैं, जहां सबसे पहले लिंग के रूप में महादेव की पूजा की परंपरा शुरू हुई थी। जागेश्वर को भगवान शिव की तपोस्थली भी माना जाता है। भगवान जागेश्वर के दर्शन करने से सारे मनोरथ पूरे होते हैं।
जागेश्वर धाम भगवान शिव का मंदिर ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यह मंदिर लगभग ढाई हजार वर्ष पुराना है। शिव पुराण, लिंग पुराण और स्कंद पुराण आदि पौराणिक कथाओं में भी मंदिर का उल्लेख है। मंदिर में शिलालेख, नक्काशी और मूर्तियां एक खजाना हैं। जाटगंगा नदी की घाटी में स्थित मंदिर में वास्तुकला और इतिहास के लिहाज से भी कई पौराणिक सामग्री हैं। वहीं, इस बार महाशिवरात्रि पर्व को लेकर मंदिर समिति की ओर से तैयारियां शुरू कर दी गई है। मंदिर को आकर्षक रूप से सजाने का कार्य किया जा रहा है। हर साल महाशिव रात्रि पर्व पर यहां बड़ी संख्या में स्थानीय समेत देश विदेश से महादेव के दर्शन को पहुंचते हैं।
महाशिवरात्रि पर चार विशेष आरतियां
हर साल महाशिवरात्रि पर्व पर मंदिर में सुबह, दोपहर और शाम की आरती के बाद रात में करीब 12 बजे महाआरती की जाती है। जिसमें बड़ी संख्या में स्थानीय श्रद्धालुओं के अलावा देश विदेश के श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
250 मंदिर देते हैं धाम का परिचय
जागेश्वर धाम में भगवान शिव के अलावा विष्णु, देवी शक्ति और सूर्य देवता की भी मूर्तियां हैं। यहां हर रोज हजारों की संख्या में लोग पूजा के लिए आते हैं। इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि इसे गौर से देखने पर इसकी बनावट बिल्कुल केदारनाथ मंदिर की तरह नजर आती है। यहां तक कि इस धाम के परिसर में करीब 250 ऐसे छोटे-बड़े मंदिर बने हुए हैं जो सम्पूर्ण जागेश्वर धाम का परिचय देते हैं।
इन देवताओं और मंदिरों से है प्रसिद्ध
जागेश्वर धाम में मुख्य तौर पर शिव, विष्णु, शक्ति और सूर्य देव की पूजा होती है। दंडेश्वर मंदिर, चंडी-का-मंदिर, जागेश्वर मंदिर, कुबेर मंदिर, मृत्युंजय मंदिर, नंदा देवी या नौ दुर्गा, नवग्रह मंदिर और सूर्य मंदिर यहां के प्रमुख मंदिर हैं। पुष्टि माता और भैरव देव की भी पूजा होती है।
जागेश्वर धाम में महाशिवरात्रि पर्व को लेकर तैयारियां की जा रही है। हर साल की तरह पर्व पर चार विशेष आरतियां होती हैं। रात में करीब 12 बजे महाआरती की जाती है। -हरिमोहन भट्ट, पुजारी, जागेश्वर धाम