द्विपक्षीय रिश्तों की सहजता

द्विपक्षीय रिश्तों की सहजता

विदेश मंत्री एस जयशंकर की छह दिनों की अमेरिका यात्रा ने स्वाभाविक रूप से सभी का ध्यान खींचा है। विदेश मंत्री ऐसे समय में अमेरिका यात्रा पर हैं जब वहां राष्ट्रपति जो बाइडन सरकार की विदाई और नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की  व्हाइट हाउस में स्वागत की तैयारियां चल रही हैं। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद यह भारत की ओर से अमेरिका की पहली उच्च स्तरीय यात्रा है। ट्रंप 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे।

इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों को और मजबूत करना, वैश्विक चुनौतियों पर विचार करना और विभिन्न क्षेत्रों में गहरे सहयोग के अवसरों का पता लगाना है। यानी यात्रा का उद्देश्य बदलते वैश्विक माहौल और अमेरिका में सत्ता परिवर्तन से द्विपक्षीय रिश्तों की सहजता को बनाए रखना है। पिछले दिनों जयशंकर ने दिल्ली में एक कार्यक्रम में कहा था कि ट्रंप का भारत के प्रति सकारात्मक राजनीतिक दृष्टिकोण रहा है और भारत उनके प्रशासन के साथ गहरे संबंध बनाने के लिए कई अन्य देशों की तुलना में अधिक लाभप्रद स्थिति में है। 

गौरतलब है कि 2008 के बाद से भारत-अमेरिका संबंधों में सभी क्षेत्रों (राजनीतिक, आर्थिक, रक्षा और सामाजिक) में एक आवश्यक निरंतरता रही है और यह रुख जारी रहेगा - भले ही समय-समय पर कुछ असंगत मुद्दे सामने आते हैं और संबंधों की मजबूती की परीक्षा लेते हैं । अमेरिका में भारतीय छात्रों की संख्या 2000 में 54,664 से बढ़कर 2023 में 3,31,600 हो गई है। अमेरिका में प्रवासी आबादी 1.9 मिलियन से बढ़कर उसी अवधि में 5 मिलियन से अधिक हो गई है। भारत-अमेरिका संबंध बहुआयामी हैं, जो सहयोग और मतभेद दोनों से चिह्नित हैं। वैश्विक चुनौतियों से निपटने में रणनीतिक अभिसरण इस साझेदारी के लचीलेपन को रेखांकित करता है।

साल 2000 में जो द्विपक्षीय व्यापार महज 20 बिलियन डॉलर था, वह 2023 में बढ़कर 195 बिलियन डॉलर हो गया। इसी अवधि में द्विपक्षीय रक्षा व्यापार शून्य से बढ़कर 24 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। इस साल के अंत तक द्विपक्षीय व्यापार 200 बिलियन डॉलर पार करने की अपेक्षा है। यात्रा का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि बदलते वैश्विक माहौल और अमेरिका में हो रहे सत्ता परिवर्तन से द्विपक्षीय रिश्तों की सहजता प्रभावित न हो। विदेश मंत्री जयशंकर की यह यात्रा भारतीय और अमेरिकी नेताओं के बीच संवाद को और मजबूत करेगी तथा  दोनों देशों के रिश्तों में नई दिशा की शुरुआत कर सकती है। क्योंकि मौजूदा वैश्विक समीकरणों में दोनों देशों के संबंधों की सहजता सुनिश्चित करने का प्रयास स्वाभाविक ही नहीं, आवश्यक भी है।