Prayagraj News : स्थानांतरण की शक्ति का प्रयोग वर्तमान में दुर्भावना का एक उदाहरण मात्र
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी विभागों में व्यक्तिगत द्वेष से प्रेरित स्थानांतरणों के मामले पर विचार करते हुए कहा कि नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों को दंडित करने के लिए स्थानांतरण की शक्ति का प्रयोग एक सीमा तक उचित है, लेकिन जब स्थानांतरण किसी प्रशासनिक आवश्यकता के तहत न होकर व्यक्तिगत द्वेष और दुर्भावना से प्रेरित होता है तो यह चिंताजनक स्थिति उत्पन्न करता है। विद्युत वितरण उपखंड कटहरा, प्रयागराज से जुड़े स्थानांतरण के वर्तमान मामले की परिस्थितियों पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि याची को किसी कदाचार के कारण नहीं बल्कि विपक्षियों द्वारा केवल दंडित करने के लिए स्थानांतरित किया गया।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि नियोक्ता के अनुशासनात्मक अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में वैध दंड के प्रावधान के विकल्प के रूप में स्थानांतरण की शक्ति का प्रयोग सुझाया गया है, लेकिन वर्तमान में यह केवल दुर्भावना का एक उदाहरण बनकर रह गया है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की एकलपीठ ने विजय कुमार यादव की याचिका को स्वीकार कर आक्षेपित आदेश रद्द करते हुए की और याची को अपनी पूर्ववत् स्थिति पर सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया। मालूम हो कि याची वर्ष 2008 से उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड, लखनऊ में कार्यरत है। वर्ष 2008 से अप्रैल 2013 तक वह प्रयागराज में विभिन्न प्रतिष्ठानों में तैनात था। इसके बाद उसका स्थानांतरण गाजीपुर कर दिया गया, लेकिन उसके अनुरोध पर कि उनकी पत्नी एक सरकारी संस्थान में प्रवक्ता के रूप में कार्यरत थीं, उन्हें फिर से प्रयागराज स्थानांतरित कर दिया गया।
गत 9 अक्टूबर को याची के खिलाफ कुछ शिकायतों के आधार पर मुख्य अभियंता ने पुनः उनका स्थानांतरण प्रतापगढ़ कर दिया। याची के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि शिकायतकर्ताओं द्वारा याची के खिलाफ शिकायतों से इनकार करने के बाद भी जांच समिति ने जानबूझकर याची का बयान दर्ज करवाया और उसके खिलाफ विद्वेषपूर्ण कार्यवाही की, जिसकी कोर्ट ने खुले तौर पर निंदा की और स्थानांतरण आदेश रद्द कर दिया।
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