कासगंज : हंसते खेलते सबको रुला कर चले गए समाजसेवी दादा रविन्द्र
कांग्रेसी नेता एवं समाजसेवी के निधन पर दौड़ी शोक की लहर
गंजडुंडवारा, अमृत विचार। कांग्रेसी नेता एवं समाजसेवी दादा रविन्द्र के निधन से हर कोई अचंभित है। मौत की खबर से जिले भर में शोक की लहर है। उनके निधन की सूचना पर टीन बाजार स्थित उनके घर पर अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे लोगों ने शोक व्यक्त किया। बुद्धिजीवियों ने उनकी मौत को समाज के लिए अपूरणीय क्षति बताया।
गंजडुंडवारा में ही नहीं, बल्कि जिले भर में गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करने वाले समाजसेवी और कांग्रेसी नेता 83 वर्षीय दादा रविन्द्र का निधन गुरुवार रात्रि को हो गया। उनके निधन की सूचना से कस्बे में शोक की लहर दौड़ गई। दादा रविन्द्र के भीतर सामाजिक समरसता कूट-कूट कर भरी थी। वह कस्बे में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल थे। अपनी लंबी उम्र में उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी योगदान दिया और क्रांति साधना अखबार के लिए कार्य किया।
उन्होंने 1962 से कांग्रेस के लिए काम करना शुरू किया। इस दौरान वे उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी में उपाध्यक्ष, प्रवक्ता, सदस्य और यूथ कांग्रेस में दो बार उपाध्यक्ष भी रहे। 1976 में इंडियन यूथ कांग्रेस द्वारा उन्हें पार्टी के लिए बेहतर कार्य करने हेतु सम्मानित किया गया। कांग्रेस के सत्ता विरोधी प्रदर्शन के दौरान वे 51 दिन जेल में भी रहे। उन्होंने अपने जीवनकाल में 2004 में लोकसभा चुनाव भी लड़ा।
दादा रविन्द्र के पिता अचल बहादुर भी समाजसेवी थे। वे नगर पालिका गंजडुंडवारा के चेयरमैन रहे। उन्होंने विनोभा भावे की भूदान योजना के तहत 1400 बीघा जमीन भूमिहीन व्यक्तियों को दान कर दी थी।
जिले भर के लोगों ने उनके निधन को समाज के लिए अपूरणीय क्षति बताया। शोक व्यक्त करने वालों में सीओ राजकुमार पाण्डेय, एसओ विनोद कुमार, सुमित विजयवर्गीय, अंशुमान सक्सेना, अब्दुल हफीज गांधी, नवीन गुप्ता, अशरफ, मुहम्मद अयाज, मियां जौहर, गौरव गुप्ता (पत्रकार) सहित सैकड़ों लोग शामिल रहे।
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