Prayagraj News : प्राथमिकी में दर्ज स्पष्ट त्रुटि को जांच के स्तर पर ठीक नहीं किया जा सकता
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपूर्ण तथ्यों के साथ दर्ज प्राथमिकी पर मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने पर आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, मिर्जापुर द्वारा उस आरोप पत्र का संज्ञान लेना, जिसमें विशिष्ट तारीख, समय और गवाहों जैसे महत्वपूर्ण विवरणों का अभाव था,बेहद चौंकाने वाला है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटि जैसे दर्ज प्राथमिकी में विशिष्ट तारीख और समय के अभाव को जांच के स्तर पर ठीक नहीं किया जा सकता है।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की एकलपीठ ने जगत सिंह की याचिका को स्वीकार कर आक्षेपित दोनों आदेशों को अत्यधिक अवैध और विकृत पाते हुए मामले की पूरी कार्यवाही को रद्द कर दिया। तथ्यों के अनुसार मामले में दाखिल चार्जशीट पर संबंधित मजिस्ट्रेट ने 1 अक्टूबर 2018 को संज्ञान(पहला संज्ञान आदेश) लिया। याची ने एक पुनरीक्षण याचिका दाखिल कर इस आदेश को चुनौती दी, जिसे अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश, मिर्जापुर ने (20 जुलाई 2022 को) स्वीकार करते हुए मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए संबंधित मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 1 दिसंबर, 2023 को फिर से संज्ञान (दूसरा संज्ञान आदेश) लिया, जिसे फिर से पुनरीक्षण न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई।
इस बार उनकी चुनौती खारिज कर दी गई और मजिस्ट्रेट के आदेश की पुष्टि की गई। इसके बाद याची ने पुनरीक्षण न्यायालय और सीजेएम के संज्ञान आदेशों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया और कहा कि प्राथमिकी में आवश्यक विवरण जैसे कि विशिष्ट तिथि, समय और गवाहों का अभाव है, जो सीआरपीसी की धारा 154 के तहत दायर किसी भी प्राथमिकी के लिए महत्वपूर्ण हैं। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 190 के तहत संज्ञान लेने से पहले इन कारकों पर विचार करना चाहिए। मालूम हो कि मार्ग विवाद को लेकर याची (जगत सिंह) के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 143, 341, 504 और 506 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
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