Allahabad High Court Decision : इन्वेंट्री खरीद बिल में हेराफेरी के आधार पर ग्राम प्रधान को पद से हटाना उचित नहीं

Allahabad High Court Decision : इन्वेंट्री खरीद बिल में हेराफेरी के आधार पर ग्राम प्रधान को पद से हटाना उचित नहीं

अमृत विचार, प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खरीद बिल में मामूली सी त्रुटि के आधार पर ग्राम प्रधान के खिलाफ होने वाली कार्यवाही को अनुचित बताते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1947 के तहत प्रत्येक इन्वेंट्री खरीद बिल में होने वाली त्रुटि के आधार पर ग्राम प्रधान के खिलाफ कार्यवाही नहीं की जा सकती है, जब तक किसी संपत्ति का नुकसान ना हुआ हो।

कोर्ट ने बताया कि अधिनियम, 1947 की धारा 95 (1)(जी) के तहत जिला मजिस्ट्रेट किसी प्रधान की वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियों को उस स्थिति में समाप्त कर सकता है और उक्त धारा में निर्दिष्ट आधारों पर उसे हटा भी सकता है, जब उस पर वित्तीय अनियमिताओं का आरोप लगा हो, लेकिन अन्य परिस्थितियों में निर्वाचित प्रतिनिधि के खिलाफ ऐसे कदम नहीं उठाए जा सकते हैं। यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर प्रहार होगा। उक्त आदेश न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान की एकलपीठ ने उमेश सिंह की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। याचिका में जिला मजिस्ट्रेट, संतकबीर नगर के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें याची द्वारा दाखिल शिकायत पर ग्राम प्रधान के खिलाफ अधिनियम,1947 की धारा 95 (1)(जी)। के तहत कार्यवाही नहीं की गई थी। 

मामले के अनुसार शिकायत में याची द्वारा बताया गया था कि ग्राम प्रधान ने ग्राम पंचायत के लिए इन्वेंट्री रजिस्टर के तहत खरीदारी की थी, जिसमें एक कुर्सी और एक मेज शामिल थी, लेकिन आपूर्तिकर्ता फर्म द्वारा प्रस्तुत बिल में दोनों वस्तुओं का स्पष्ट उल्लेख नहीं था। हालांकि बिल में राशि जोड़ दी गई थी। अपनी जांच में जिला मजिस्ट्रेट ने ग्राम प्रधान से 21,950 की वसूली का आदेश दिया, लेकिन उन्हें पद से हटाया नहीं। याची का तर्क है कि ऐसे ग्राम प्रधान का पद पर बने रहना जनहित में उचित नहीं है। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि इन्वेंट्री खरीद बिल में खरीदारी का स्पष्ट उल्लेख न करना अनियमितता के अंतर्गत है, लेकिन इसके लिए अधिनियम, 1947 की धारा 95 (1)(जी) के तहत कार्यवाही करना उचित नहीं है। अतः कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट के आदेश को बरकरार रखते हुए वर्तमान याचिका खारिज कर दी।

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