Prayagraj News : अमान्य विवाह से उत्पन्न बच्चों को वैधता प्रदान करती है हिंदू विवाह की धारा 16
अमृत विचार, प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अमान्य विवाह से उत्पन्न हुए बच्चों के नाम सेवा अभिलेखों में दर्ज करने के मामले में महत्वपूर्ण आदेश देते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 शून्य और शून्यकरणीय विवाह से उत्पन्न बच्चों की वैधता की रक्षा करती है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की एकलपीठ ने एक पूर्व सैनिक मुकेश कुमार द्वारा दाखिल दूसरी अपील को स्वीकार करते हुए पारित किया, साथ ही कोर्ट ने अपीलीय अदालत और निचली अदालत के रिकॉर्ड तलब करते हुए मामले की अंतिम सुनवाई जनवरी 2025 के दूसरे सप्ताह में सुनिश्चित की है।
मामले के अनुसार अपीलकर्ता ने एक वाद दाखिल कर मांग की कि उसे एक डिक्री दी जाए, जिसके तहत यह घोषणा की जाए कि उसके दो बच्चों के नाम उसके सेवा अभिलेख में दर्ज किए जाएंगे। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि चूंकि उसकी पहली शादी से कोई संतान नहीं थी, इसलिए उसकी दूसरी शादी से उत्पन्न बच्चों के नाम उसके सेवा अभिलेखों में दर्ज हों, जिससे वह पेंशन संबंधी लाभ प्राप्त कर सकें, लेकिन उसके दावे को दोनों निचली अदालतों ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि दोनों बच्चे अपीलकर्ता द्वारा पहले विवाह के जारी रहने के दौरान दूसरे विवाह से उत्पन्न हुए थे, इसलिए दूसरा विवाह शून्य है।
अंत में कोर्ट ने माना कि आक्षेपित आदेश अधिनियम, 1955 की धारा 16 का उल्लंघन है। मौजूदा मामले पर विचार की आवश्यकता को देखते हुए कोर्ट ने यह प्रश्न तैयार किया कि क्या हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 के बावजूद अमान्य विवाह से उत्पन्न हुए बच्चों के नाम को सेवा अभिलेखों में दर्ज करने के लिए घोषणात्मक डिक्री को अस्वीकार किया जा सकता है।
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