स्कूली शिक्षा: यूपी में कम हो जाएंगे परिषदीय स्कूल, बसपा प्रमुख मायावती ने विलय का किया विरोध, जानें क्या बोलीं.....

स्कूली शिक्षा: यूपी में कम हो जाएंगे परिषदीय स्कूल, बसपा प्रमुख मायावती ने विलय का किया विरोध, जानें क्या बोलीं.....

अमृत विचार, लखनऊ: शिक्षा के अधिकार के तहत सभी आय वर्ग के खासकर गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने वाले परिषदीय स्कूलों की संख्या अब कम हो जाएगी। इनके संचालन पर आने वाले व्यय को कम करने के लिए सरकार विलय की नीति को अमली जामा पहनाने जा रही है। लेकिन बसपा प्रमुख मायावती ने इसे दलित, वंचित और गरीब वर्ग के बच्चों के अधिकार का हनन बताकर सरकार की इस नीति का विरोध किया है। रविवार को उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर बयान जारी करते हुए कहा कि प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में जरुरी सुधार करने की बजाय उन्हें बंद करने या उनके विलय का फैसला सही नहीं है।

उत्तर प्रदेश में करीब एक लाख 37 हजार परिषदीय स्कूल संचालित हो रहे हैं। सर्वे में पाया गया कि 27,764 परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल ऐसे हैं जहां 50 से भी कम छात्र हैं। सरकार ने 50 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को आसपास के अन्य स्कूलों करने का फैसला लिया है। इस नीति को जमीनी रुप देने के लिए सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश भी जारी कर दिया गया है। अगले शैक्षणिक सत्र यानी 2025-26 सत्र के लिए इन स्कूलों का विलय करने के निर्देश दिए गए हैं। 13 या 14 नवंबर को बैठक कर ऐसे स्कूलों की सूची तैयार की जाएगी। इसपर रविवार को बसपा प्रमुख मायावती ने अपना विरोध जताया है। मायावती ने कहा, 'यूपी सरकार द्वारा 50 से कम छात्रों वाले बदहाल 27,764 परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में जरूरी सुधार करके उन्हें बेहतर बनाने के उपाय करने के बजाय उनको बंद करके उनका दूसरे स्कूलों में विलय करने का फैसला उचित नहीं। ऐसे में गरीब बच्चे आखिर कहाँ और कैसे पढ़ेंगे?'

स्कूलों को बंद करने का भी फैसला अनुचित- मायावती
बसपा सुप्रीमो ने कहा, 'यूपी व देश के अधिकतर राज्यों में खासकर प्राइमरी व सेकेंडरी शिक्षा का बहुत ही बुरा हाल है जिस कारण गरीब परिवार के करोड़ों बच्चे अच्छी शिक्षा तो दूर सही शिक्षा से भी लगातार वंचित हैं। ओडिसा सरकार द्वारा कम छात्रों वाले स्कूलों को बंद करने का भी फैसला अनुचित है। उन्होंने कहा, 'सरकारों की इसी प्रकार की गरीब व जनविरोधी नीतियों का परिणाम है कि लोग प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने को मजबूर हो रहे हैं, जैसाकि सर्वे से स्पष्ट है, किन्तु सरकार द्वारा शिक्षा पर समुचित धन व ध्यान देकर इनमें जरूरी सुधार करने के बजाय इनको बंद करना ठीक नहीं है।

अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा के लिए बनी थी नीति
संविधान के अनुच्छेद-45 में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत यह व्यवस्था बनायी गयी थी कि संविधान को अंगीकृत करके 10 वर्षों के अन्दर 6-14 आयु वर्ग के सभी बालक, बालिकाओं के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की जायेगी। वर्ष 1986 में जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनी थी तब से अब तक विशेष रूप से प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में काफी सुधार हुआ है। राज्य सरकार द्वारा समग्र शिक्षा अभियान योजनान्तर्गत 6-14 आयु वर्ग के सभी बच्चों को कक्षा-1 से 8 तक की शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करते हुए विभिन्न कार्यक्रम संचालित किये जा रहे है। निःशुल्क और बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक 300 की आबादी और 1 कि.मी. की दूरी पर प्राथमिक विद्यालय की सुविधा व 3 कि.मी. की दूरी एवं 800 आबादी पर 1 उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थापना का मानक निर्धारित करते हुए विद्यालय की स्थापना की गयी हैं।

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