स्क्रीन पर काफी समय बिताने से बढ़ रहा बच्चों में मायोपिया: कानपुर में विशेषज्ञों का दावा 2050 तक मायोपिया पीड़ितों का आंकड़ा होगा सर्वाधिक

कानपुर ऑफ्थेलमिक सोसाइटी के कान्क्लेव में विशेषज्ञों ने दी अहम जानकारी

स्क्रीन पर काफी समय बिताने से बढ़ रहा बच्चों में मायोपिया: कानपुर में विशेषज्ञों का दावा 2050 तक मायोपिया पीड़ितों का आंकड़ा होगा सर्वाधिक

कानपुर, अमृत विचार। आंखों से संबंधित बीमारी हर उम्र के लोगों को प्रभावित कर रही हैं। बच्चों में भी ये खतरा बढ़ता जा रहा है। आंखों की रोशनी कमजोर होने की दिक्कत क्वालिटी ऑफ लाइफ को भी प्रभावित करती है। स्क्रीन टाइम ने बच्चों और युवाओं में मायोपिया के जोखिम को पहले की तुलना में काफी बढ़ा दिया है। वर्ष 2050 तक यह समस्या बच्चों व व्यस्कों में और अधिक बढ़ जाएगा। यह जानकारी ग्वालियर से आए वरिष्ठ फेको सर्जन डॉ.सुरेंद्र भसीन ने दी। 

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के सभागार में कानपुर आफ्थेलमिक सोसाइटी का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ, जिसकी थीम अपनी पढ़ाई की नींव को मजबूत करें, जिससे एक अच्छी चिकित्सीय सेवाएं मरीज को दे सके रखी गई। अधिवेशन में आफ्थेलमिक फोटोग्राफी प्रतियोगिता हुई, जिसमे डॉ.मोहित खत्री को प्रथम, डॉ.दीपाली बेलानी को द्वितीय और डॉ.सौरभ मिस्त्री को तृतीय पुरस्कार मिला।

जीएसवीएम की नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ.शालिनी मोहन ने कहा कि नेत्र शल्य चिकित्सा बहुत ही बारीक विधि से की जाती है, जिससे उसकी बारीकियों को समझना और उससे अपने मरीजों को लाभान्वित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित किया गया है। जीएसवीएम के प्राचार्य प्रो. संजय काला ने कहा कि इस प्रकार के अधिवेशन से केवल जूनियर डॉक्टर और छात्र-छात्राओं का ही नहीं, बल्कि सभी नेत्र डॉक्टरों का भी ज्ञान वरदान होता है।

डॉ. शालिनी ने ग्लूकोमा और उसके ऑपरेशन, डॉ. प्रीति गुप्ता ने कार्निया को सुरक्षित रखने व ऑपरेशन, डॉ. सुरभि अग्रवाल ने नई इंवेस्टिगेशन और डॉ. मनीष महिंद्रा ने आईएफआईएस के बारे में अहम जानकारी दी। डॉ.सुरभि अग्रवाल व डॉ. नम्रता पटेल ने बताया कि ऐसे राष्ट्रीय अधिवेशन छात्रों के पठन-पाठन के लिए काफी जरूरी है। इनसे अत्यधिक ज्ञानवर्धन होता है।

अधिवेशन में कलकत्ता से डॉ. स्वपन सामंता, ग्वालियर से डॉ.पुरेंद्र भसीन, मेरठ से डॉ. करण, लखनऊ से डॉ.देवकांत मिश्रा, डॉ.पुष्पराज और प्रयागराज से डॉ.अरी बान दत्ता ने नेत्र रोगों के बढ़ती समस्या और उनके निवारण की अहम जानकारियां दी। इस दौरान डॉ. अवध दुबे , डॉ. आरके सिंह , डॉ.जीके मिश्रा, डॉ. लोकेश अरोड़ा, डॉ. मनीष त्रिवेदी, डॉ.मनीष सक्सेना समेत आदि लोग रहे। 

डॉ. पुरेंद्र भसीन ने बताया कि विश्व में सबसे बढ़ी समस्या वर्तमान में चश्मे का नंबर बढ़ना है। स्क्रीन टाइम अधिक होने, आउटडोर गतिविधि कम होने व विटामिन डी की कमी की वजह से बच्चों व व्यस्को में मायोपिया की समस्या अधिक बढ़ रही है। हालांकि अब दवा के माध्यम से भी चश्मे का नंबर बढ़ने से रोका जा सकता है। 

डॉ. पुष्पराज ने बताया कि आंखों के इलाज में स्टेम सेल का रोल काफी अहम है। पांच साल में 15 मरीजों को स्टेम सेल दी, जिसके परिणाम काफी सफल रहे है। इन मरीजों में पांच साल से 25 साल के मरीज शामिल थे, जिनकी सही आंख से स्टेम सेल गड़बड़ आंख में डाली गई थी। वहीं, प्रतिवर्ष करीब 70 कर्निया प्रत्यारोपण होता है।  

डॉ. करन भाटिया ने बताया कि आंखों की कर्निया की अब लेयर बाय लेयर सर्जरी करना काफी आसान हो गया है, जिसकी वजह से मरीजों की आंख की रोशनी जाने का खतरा नहीं रहता है। एक कर्निया से कई लोगों की रोशनी भी लौट सकती है। वहीं, डे-केयर सर्जरी के तहत आंखों के ऑपरेशन के बाद मरीजों को रूकने की भी जरूरत नहीं रहती।  

कानपुर ऑफ्थेलमिक सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. मनीष महिंद्रा ने बताया कि मायोपिया ग्रस्त रोगी को पास की चीजे तो स्पष्ट रूप से दिखती हैं, लेकिन दूर की धुंधली दिखती हैं। इसमें आंख का आकार बदल जाता है। आंख की सुरक्षात्मक बाहरी परत कॉर्निया के बड़े होने से ऐसी समस्या हो सकती है। तब आंख में प्रवेश करने वाला प्रकाश ठीक से फोकस नहीं कर पाता है।

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