भारत-जर्मनी की दोस्ती

भारत-जर्मनी की दोस्ती

भारत और जर्मनी के बीच विकास सहयोग द्विपक्षीय संबंधों का एक अहम हिस्सा है। हर स्तर पर भारत और जर्मनी के संबंध मजबूत हो रहे हैं। भारत और जर्मनी के बीच रक्षा, प्रौद्योगिकी और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ रहा है। भारत और जर्मनी का द्विपक्षीय कारोबार 30 बिलियन डॉलर से अधिक पहुंच गया है, जो दोनों देशों के मजबूत द्विपक्षीय रिश्तों को दर्शाता है। जर्मनी, यूरोपीय संघ में भारत का प्रमुख व्यापारिक साझेदार है। महत्वपूर्ण है कि भारत और जर्मनी की रणनीतिक साझेदारी ऐसे समय में मजबूत सहारे के रूप में उभरी है, जब दुनिया तनाव, संघर्ष और अनिश्चितता का सामना कर रही है।

साथ ही युद्ध के कारण हो रहे राजनीतिक बदलावों ने भी इस ओर ध्यान खींचा है कि अपनी साझेदारी को किस तरह अलग रूप दे सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज के साथ सातवें अंतर-सरकारी परामर्श (आईजीसी) के बाद कहा कि यूक्रेन और पश्चिम एशिया में चल रहा संघर्ष दोनों देशों के लिए चिंता का विषय हैं। भारत का हमेशा मत रहा है कि युद्ध से समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।

गौरतलब है कि भारत और जर्मनी के बीच अंतर-सरकारी परामर्श हर दो साल में होता है। इसमें सहयोग की व्यापक समीक्षा और विभिन्न क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच जुड़ाव के नए क्षेत्रों की पहचान की जाती है। पिछली बार इसका आयोजन मई 2022 में बर्लिन में किया गया था। इन दो वर्षों में रक्षा, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, हरित और सतत विकास जैसे क्षेत्रों में बढ़े सहयोग की प्रगति उत्साहजनक कही जा सकती है। 

जर्मन चांसलर शोल्ज का चौथी बार का दौरा भारत-जर्मनी के संबंधों पर उनके फोकस को दिखाता है। जर्मन चांसलर एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत आए हुए हैं। वास्तव में भारत-जर्मनी के संबंध आदान-प्रदान के संबंध नहीं बल्कि दो सक्षम और मजबूत लोकतंत्रों की परिवर्तनकारी साझेदारी है। जर्मनी की ‘फोकस ऑन इंडिया’ रणनीति भी स्वागत योग्य है। इस नीति के तहत जर्मनी, भारत के साथ आर्थिक और सामरिक सहयोग और मजबूत करना चाहता है। उम्मीद है कि भारत दशक के अंत तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।

जर्मनी की कंपनियां भी भारत में उज्ज्वल भविष्य देख रही हैं। भारत और जर्मनी के बीच भू-राजनीतिक मामलों पर नियमित परामर्श से विश्वास और आत्मविश्वास का निर्माण हो सकता है। फिर भी भारत और जर्मनी के बीच राजनय संबंधों को जटिल बनाने वाले मतभेदों को रचनात्मक संवाद के जरिए सुलझाना होगा।