प्रयागराज: जमानत याचिका आरोपी को सबक सिखाने के उद्देश्य से खारिज करना अनुचित- HC
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत याचिकाओं को खारिज करने की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा कि निर्दोष व्यक्ति की जमानत याचिका सबक सिखाने के उद्देश्य से खारिज नहीं की जानी चाहिए। जमानत आवेदनों पर विचार करते समय आरोपों तथा सजा की गंभीरता के अलावा इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि क्या आरोपी की ओर से फरार होने या दावों के साथ छेड़छाड़ करने या उन्हें धमकाने की संभावना है।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि निर्दोष व्यक्ति की जमानत याचिका केवल उसे कारावास का स्वाद चखाने के उद्देश्य से खारिज करना अनुचित होगा। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय संविधान में निर्दोषता की धारणा हमेशा से स्वीकार्य रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी यह स्वीकार किया है कि "जमानत नियम है, जेल अपवाद है।" अतः किसी व्यक्ति को मुकदमे के दौरान लंबे समय तक जेल में रखना उचित नहीं है। हालांकि वर्तमान मामले में निचली अदालत कानून के इस सुस्थापित सिद्धांत को भूल गई है कि लंबित मुकदमों के दौरान सजा के तौर पर जमानत नहीं रोकी जा सकती है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकलपीठ ने माया तिवारी की जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया।
याची के खिलाफ एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड योजना के लिए फर्जी निविदाएं जारी करके लोगों को धोखा देने के आरोप में आईपीसी की विभिन्न धाराओं और आईटी की धारा 66-डी के तहत पुलिस स्टेशन सराय ख्वाजा, जौनपुर में मामला दर्ज किया गया था। याची कथित तौर पर मंत्रालय के उपसचिव के नाम पर एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड योजना के लिए फर्जी टेंडर जारी करने वाले गिरोह के साथ काम करती थी। उसे अक्टूबर 2023 में गिरफ्तार किया गया था।
याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याची मुख्य आरोपी संतोष कुमार सेमवाल द्वारा की गई धोखाधड़ी का शिकार हुई है, जिसने कथित तौर पर पीएमओ से जारी होने वाले जाली कार्य आदेश तैयार किया और याची के व्हाट्सएप नंबर पर भेज दिए। याची के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सह-आरोपी को पहले ही जमानत मिल चुकी है, इसलिए कानून के अनुसार उन्हें भी जमानत मिलनी चाहिए। हालांकि सरकारी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि जाली कार्य आदेश याची के व्हाट्सएप नंबर से भेजा गया था। 10 लाख रुपए उसके खाते में स्थानांतरित भी किए गए हैं, साथ ही उसके पति और उसकी बेटी के खातों में भी पैसे स्थानांतरित हुए।
इसके अलावा याची ने खुद को पीएमओ में एक उच्च अधिकारी के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया था। इसके अलावा अगर याची को सह- आरोपी सेमवाल द्वारा धोखा दिया गया था तो उसे उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत करनी चाहिए थी जबकि याची की ओर से ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अभी तक कोई आरोप तय नहीं किया गया है और याची को सशर्त जमानत दे दी।
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