पाकिस्तान के इशारे पर

पाकिस्तान के इशारे पर

एक दशक बाद जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए। उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद उम्मीद जगी थी कि जम्मू कश्मीर में शांति की बहाली होगी और विकास की गति तेज होगी। चिंता की बात है कि सरकार गठन के बाद पाकिस्तान के इशारे पर कश्मीर घाटी में लगातार आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। गुरुवार को अधिकारियों ने बताया कि बिजनौर के रहने वाले शुभम कुमार को बटागुंड गांव में आतंकवादियों ने गोली मार दी।

पिछले एक सप्ताह में कश्मीर में प्रवासी मजदूरों पर हमले का यह तीसरा मामला है। रविवार को गांदरबल जिले में एक निर्माण स्थल पर हुए आतंकी हमले में छह प्रवासी मजदूरों और एक स्थानीय चिकित्सक की मौत हो गई थी, जबकि 18 अक्टूबर को शोपियां जिले में आतंकवादियों ने बिहार के एक मजदूर की गोली मारकर हत्या कर दी थी। गांदरबल में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने ली थी। टीआरएफ के मुखिया पाकिस्तान में बैठकर घाटी में दहशत फैलाने की साजिश रचते हैं। पाकिस्तान इस आतंकी संगठन को फंडिंग भी करता है। इस संगठन का नाम ही इसके मकसद को ज़ाहिर कर देता है। हकीकत तो ये है कि आईएसआई ने टीआरएफ को एक अलग तरह की रणनीति के तहत बनाया है, जो अन्य आतंकवादी संगठनों से बिल्कुल अलग है।

जम्मू कश्मीर में दूसरे राज्यों से आकर काम करने वालों पर हमले का सिलसिला जारी रहने से प्रवासी नागरिकों में दहशत का माहौल है। उन कश्मीरी पंडितों में भी डर पैदा हो गया है जो प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में तैनात हैं। गौरतलब है कि कश्मीर घाटी में आतंकवादियों के सफाए के लिए भारतीय सेना और सुरक्षा बल के जवान लगातार मुहिम चला रहे हैं। इसके बावजूद राज्य में दहशत फैलाने की कोशिशों पर रोक लगा पाना जटिल चुनौती बनकर उभरा है। अभी भी वहां बड़ी संख्या में आतंकवादी छिपे हुए हैं।

इस कारण वहां से प्रवासी श्रमिकों व कश्मीरी पंडितों का पलायन तेज होगा जो कि चिंता की बात है। नई सरकार बनने के बाद वहां सक्रिय आतंकवादियों और अलगाववादी ताकतों के हौसले बुलंद हुए हैं। सीमा पार से पाकिस्तान टीआरएफ के जरिए कश्मीर घाटी में अशांति फैलाने की साजिशें कर रहा है, जिनसे निपटने के लिए अलग रणनीति पर काम करने की जरूरत है। साथ ही जम्मू कश्मीर में भारतीय सेना और सुरक्षाबलों को और अधिक सतर्क रहने की जरूरत है।