मुरादाबाद : जिले में बढ़ रहा हेपेटाइटिस-सी व बी, रोगी दवा से कर रहे परहेज

चिंताजनक- कुंदरकी व बिलारी में सर्वाधिक देखे जा रहे हेपेटाइटिस-बी व सी के मामले,  हेपेटाइटिस के रोगियों के लिए जिला अस्पताल में निशुल्क जांच व इलाज

मुरादाबाद : जिले में बढ़ रहा हेपेटाइटिस-सी व बी, रोगी दवा से कर रहे परहेज

हेपेटाइटिस-सी,

मुरादाबाद, अमृत विचार। जिले में हेपेटाइटिस-सी व बी के रोगियों की संख्या दिन ब दिन बढ़ रही है। जिला अस्पताल में 6-7 रोगियों में रोजाना हेपेटाइटिस सी की पुष्टि भी हो रही है। इसी तरह कुछेक केस हेपेटाइटिस-बी के भी मिल रहे हैं। वर्ष 2018 से देखें तो आज 23 अक्टूबर तक जिले में हेपेटाइटिस-सी के कुल 21,144 रोगी मिले हैं। इनमें दवा लेने के बाद 19,987 रोगी ठीक भी हो गए हैं। इसी तरह हेपेटाइटिस-बी के 107 रोगियों की पुष्टि हो चुकी है।

बड़ी बात ये है कि हेपेटाइटिस-बी वाले रोगी को जीवन पर्यंत दवा लेनी होती है, इसके बाद भी वह नियमित रूप से दवा नहीं ले रहे हैं। वर्तमान में 94 रोगी ही दवा लेने जिला अस्पताल आ रहे हैं। अर्थात हेपेटाइटिस-बी संक्रमित 13 रोगी नियमित दवा नहीं ले रहे हैं। हेपेटाइटिस-सी व बी के रोगियों की बढ़ती संख्या को देख डाक्टर भी हैरत में हैं। जिला अस्पताल के गेट पर ही दो मंजिला भवन में हेपेटाइटिस वायरल लोड की जांच बीएसएल-2 लैब में निशुल्क होती है।

नंबर गेम

  • 21,144 हेपेटाइटिस-सी के मिले हैं रोगी
  • 107 रोगियों में हो चुकी है हेपेटाइटिस-बी की पुष्टि
  • 13 रोगी नहीं ले रहे नियमित दवा

माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. दीपाली बताती हैं कि हेपेटाइटिस-सी व बी के सबसे अधिक रोगी जिले के बिलारी व कुंदरकी में सर्वाधिक देखने को मिल रहे हैं। वह बताती हैं कि अस्पताल में हर रोज नए-पुराने 60-70 रोगी आते हैं। इसमें हेपेटाइटिस-सी व बी के भी होते हैं। इसका कारण वह बताती हैं कि ब्लड सर्कुलेशन, दूषित सिरिंज का प्रयोग और फिजिकल रिलेशनशिप है। रोगी को दूषित ब्लड चढ़ाने से वह हेपेटाइटिस-सी व बी से ग्रसित हो जाता है। वह बताती हैं कि वह सभी रोगियों का फॉलोअप करती हैं। यदि काेई रोगी गंभीर हाेता है तो वह उसे मेरठ में हॉयर सेंटर के लिए रेफर भी करती हैं।

हेपेटाइटिस-बी की अपेक्षा सी अधिक घातक
नेशनल वायरल कंट्रोल प्रोग्राम से जुड़ी वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. दीपाली कहती हैं कि हेपेटाइटिस-सी के रोगी यदि तीन महीने तक इलाज लें तो वह स्वस्थ हो जाते हैं। लेकिन, हेपेटाइटिस-बी के रोगियों को जीवन पर्यंत दवा के सहारे जीना होता है। उन्होंने बताया कि जब तक वायरल का असर लीवर पर नहीं दिखता उस समय तक हेपेटाइटिस-बी के रोगी की दवाई शुरू नहीं करते है। यदि दवाई खाने के बाद रोगी में हेपेटाइटिस-बी निगेटिव आ गया तो दवाई रोककर उसे फॉलोअप पर रखते हैं।

लेकिन, ऐसे रोगी कम ही होते हैं जो इस स्तर को प्राप्त कर पाएं। दवा लेने से लीवर का नुकसान होना बंद हो जाता है और वायरस की सक्रियता रुक जाती है। लेकिन, देखें तो रोगी के लिए हेपेटाइटिस-बी की अपेक्षा सी अधिक घातक होता है। हेपेटाइटिस-सी की वैक्सीन ही नहीं बनी है। जबकि हेपेटाइटिस-बी का वैक्सीन है, जो शिशु के जन्म, फिर छह सप्ताह पर और इसके बाद 14वें सप्ताह पर एक-एक अर्थात वैक्सीन की कुल तीन डोज लगती हैं। नेशनल वायरल कंट्रोल प्रोग्राम 2018 से चल रहा है। इस प्राेग्राम के तहत हेपेटाइटिस-सी व बी के रोगियों का डाटा वेबसाइट पर ऑनलाइन किया जा रहा है। ताकि उनका बेहतर ढंग से फॉलोअप करने में डॉक्टरों को आसानी रहे।

2024 में मिले रोगियों का आंकड़ा
1 अप्रैल से 23 अक्टूबर तक हेपेटाइटिस-सी के 3719 रोगी मिले हैं। इनमें लगातार तीन महीने तक दवा लेने वाले 3567 रोगी ठीक भी हुए हैं। हेपेटाइटिस-बी के करीब 43 रोगी इस साल मिले हैं।

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