भीमताल: शीतला माता के मंदिर में हर मुराद होती है पूरी

भीमताल: शीतला माता के मंदिर में हर मुराद होती है पूरी

भीमताल, अमृत विचार। हल्द्वानी शहर से करीब सात किलोमीटर दूर ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व को समेटे रानीबाग गांव है। यहां कई मंदिर हैं। गार्गी नदी के किनारे चित्रशाला घाट है, इसलिए इसे कुमाऊं का हरिद्वार भी कहा जाता है। यहीं पर मुख्य सड़क से लगभग आधा किलोमीटर दूर सागौन व साल के घने वन के मध्य स्थित है शीतला माता का मंदिर। 

शीतला माता का मंदिर जहां स्थित है उस जगह को शीतला हाट भी कहा जाता है। काठगोदाम से मंदिर की ओर पैदल आने पर जंगल वाले रास्ते में एक छोटा गधेरा पड़ता है। यहीं पर शीतला पेयजल योजना का पंप है, जहां से पूरे हल्द्वानी को पेयजल की आपूर्ति होती है। यहीं पर चंद राजाओं के समय हाट लगा करती थी। गधेरे के उस पार ‘बटखरी’ की प्रसिद्ध गढ़ी है, जिसे अब बाड़ख्वाड कहा जाता है। जब कुमाऊं में गोरखाओं का शासन था तब उन्होंने इस गढ़ी को नष्ट कर दिया। उस समय यहां घनी बस्ती हुआ करती थी।

हल्द्वानी कसेरा लाइन के चिरंजी लाल ने साठ के दशक में माता का पक्का मंदिर बनवाया। इसी दशक में मंदिर कमेटी का गठन किया गया। कई सालों तक कमेटी के सचिव रहे समाजसेवी बद्रीदत नौगाईं के कहने पर हल्द्वानी के वैद्य दामोदर पंत और रेलवे बाजार के त्रिलोक सिंह बगडवाल ने मंदिर में धर्मशाला का निर्माण करवाया।

मंदिर के आगे हवन कुण्ड भी बनाया गया।  वर्ष 1968 में लमगड़ा के कमारी देवी मंदिर के पुजारी रहे भुवन ब्रहमचारी यहां आये। उनके साथ उनके शिष्य बिशन ब्रहमचारी भी आये। भुवन ब्रहमचारी ने यहां भगवान गणेश, भैरव, बजरंग बली आदि के छोटे-छोटे मंदिरों का निर्माण करवाया। नब्बे के दशक में शीतला मंदिर द्वार कमेटी का गठन किया गया। कमेटी ने मुख्य सड़क से मंदिर को जाते मार्ग पर द्वार का निर्माण करवाया।

भुवन ब्रहमचारी की मृत्यु के बाद बिशन ब्रहमचारी मंदिर के मुख्य पुजारी बने। कुछ साल पहले अज्ञात चोरों ने बिशन ब्रहमचारी की हत्या कर दी। उनके हत्यारों का आज तक पता नहीं चला। शीतला मंदिर कमेटी के पूर्व सचिव दीपक नौगांई बताते हैं कि नवरात्रि में श्रद्धालु दूरदराज के क्षेत्रों से शीतला माता के दर्शन करने के लिए आते हैं। मंदिर की देखरेख और सुरक्षा का कार्य शीतला मंदिर कमेटी करती है। वर्तमान में मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सचिन साह और सचिव गिरीश नौगांई हैं।

उजड़े घर व दीवारों पर आज भी हैं ओखली के चिन्ह
शीतला माता मंदिर की स्थापना के पीछे एक लोकोक्ति भी प्रचलित है, जिसे आज बहुत कम लोगों ने सुना होगा ‘हाट कि नालि कोटा, काट की नालि हाट’ अर्थात हाथों हाथ नाली हाट से कोटा ( रामनगर) और कोटा से हाट तक घूमती थी। आज भी जंगल में उजडे़ हुए घर व ध्वस्त दीवारों में ओखली के चिन्ह हैं। पहले मंदिर में शीतला देवी की पत्थर की प्रतिमा थी। किसी जमाने में जब यहां मंदिर नहीं था तब यह मूर्ति सेमल व बेल के पेड़ों के नीचे प्रतिष्ठित थी। मूर्ति कमलनुमा थी, जिसके बीच में शक्ति चिन्ह बना था। श्रद्धालु जब धार्मिक अवसरों पर यहां आते थे तो इसमें घाघरा व अन्य वस्त्र पहनाते थे। अब यह प्राचीन मूर्ति देखने को नहीं मिलती।

ढूंगसिल गांव के पांडे लोग बनारस से लाये थे मूर्ति
वर्तमान मूर्ति की स्थापना के पीछे बुजुर्गों का कहना है कि भीमताल के ढूंगसिल गांव में देवी मंदिर में मूर्ति स्थापना के लिए वहां के पांडे लोग बनारस मूर्ति लेने गये थे। तब यात्रा पैदल ही हुआ करती। वापसी पर उन्होंने काठगोदाम में गुलाबघाटी में डेरा डाला। रात को सपने में देवी मां ने उन्हें दर्शन दिये और कहा कि वह थक गई हैं और आगे नहीं जाना चाहतीं। देवी मां ने कहा कि ऊपर पहाड़ी पर मेरी स्थापना कर दी जाए। देवी की आज्ञा मानकर मूर्ति की स्थापना वहां कर दी गई, जहां आज शीतला माता मंदिर है।