पीलीभीत: अब तराई तक पहुंचा देहदान अभियान, कानपुर के सेंगर दंपति चलाएंगे मुहिम

पीलीभीत: अब तराई तक पहुंचा देहदान अभियान, कानपुर के सेंगर दंपति चलाएंगे मुहिम

पीलीभीत, अमृत विचार। करीब इक्कीस साल पहले कानपुर से शुरू हुआ युग दधीचि देहदान अभियान प्रदेश के विभिन्न जनपदों में अपना विस्तार करने के बाद तराई तक पहुंचा है। अब पीलीभीत में भी इसकी अलख जगाई जाएगी। कानपुर से आए सेंगर दंपति की मौजूदगी में मेडिकल कॉलेज में मंगलवार के प्रेसवार्ता की गई। जिसमें अभियान से संबंधित जानकारी विस्तार से दी गई।

पूरनपुर रोड पर बिठौराकलां गांव में स्थित राजकीय मेडिकल कॉलेज हुई प्रेसवार्ता की अध्यक्षता प्राचार्या डॉ.संगीता अनेजा ने की। कानपुर से आए देहदान अभियान प्रमुख मनोज सेंगर और उनकी पत्नी माधवी सेंगर ने मुहिम के संबंध में विस्तार से बताया। कहा कि 15 नवंबर 2003 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री के आग्रह पर कानपुर के जेके कालोनी जाजमऊ स्थित एक कमरे में  परिवार के सात सदस्यों द्वारा देहदान संकल्प से इसकी शुरुआत की गई। अभियान अब युग दधीचि देहदान अभियान के रूप में पूरे प्रदेश के दर्जनों राजकीय मेडिकल कालेजों को अब तक 287 मृत देह दान कर चुका है।  इसमें एम्स रायबरेली और एम्स गोरखपुर भी शामिल हैं।  3500 से अधिक लोगों ने देहदान संकल्प पत्र भर कर दिए हैं। मनोज सेंगर ने बताया कि अभियान का प्रथम देहदान कानपुर देहात के डेरापुर से 21 वर्षीय बउआ दीक्षित का 20 अगस्त 2006 को हुआ था। अभियान की महासचिव माधवी सेंगर ने कहा कि देहदान में एक संकल्प पत्र भरा जाता है। एक हलफनामा और आधार की कापी लगती है। परिवार की सहमति आवश्यक है। एक फोटो भी लगेगा। इसके लिये मनोज सेंगर के फोन 9839161790 पर सम्पर्क कर सकते हैं। कॉलेज के एनाटमी विभाग में भी फार्म उपलब्ध है। अब यहां के महर्षि दधीचि के वंशजों का आह्वान है कि वे आगे आकर अपनी देह का समर्पण मरणोपरान्त राष्ट्र हित में करें। अभियान प्रमुख ने ये भी बताया कि एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, कैंसर, सेप्टिसीमिया, शरीर में घाव, अप्राकृतिक मृत्यु की स्थिति में देह स्वीकार नहीं की जा सकती है। इस मौके पर डॉ.फरीद के साथ सदस्य देहदान समिति डा.मुकेश पांडेय, डा. विभूति गोयल आदि मौजूद रहे।

सेंगर दंपति ले चुका है आजीवन निःसंतान रहने का संकल्प
मेडिकल कॉलेज की प्राचार्या डॉ. संगीता अनेजा ने बताया कि सेंगर दंपति ने अपना दवा व्यवसाय त्याग कर आजीवन निःसंतान रहने का प्रण करके पूरा जीवन ही देहदान अभियान के नाम कर दिया है। एनाटमी हेड डॉ.अर्चना सिंह ने बताया कि आखिर क्यों देहदान आवश्यक है। कहा कि मानव देह की आन्तरिक संरचना समझने के लिये प्रथम वर्ष के चिकित्सा छात्रों को अध्ययन को मृत देह की आवश्यकता होती है। आदर्श स्थिति में दस छात्रों पर एक देह होनी चाहिए। मगर, कमी के चलते एक देह पर पच्चीसों छात्रों को सीखना पड़‌ता है।  इसी कमी को पूरा करने के लिए देहदान करना इस युग का सबसे बड़ा धर्म है।

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