लखनऊ न्यूज: सतीश चंद्र मिश्रा के खिलाफ आपराधिक अवमानना के चीफ जस्टिस को भेजा संदर्भ
अवध बार एसोसिएशन ने की संबंधित जज के तबादले की मांग
लखनऊ, विधि संवाददाता। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने पूर्व सांसद व वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश चंद्र मिश्रा के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही चलाने के लिए मामला मुख्य न्यायमूर्ति को संदर्भित किया है। कोर्ट ने कहा कि एक मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता का आचरण निंदनीय और अदालत की गरिमा को गिराने वाला है।
अपने आदेश में कोर्ट ने आगे कहा कि सतीश चंद्र मिश्रा मिश्रा अदालत पर व्यक्तिगत द्वेष का आरोप और आक्षेप भी लगाते रहे। उनका इस प्रकार का आचरण आपराधिक अवमानना की श्रेणी में आता है। इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को आपराधिक अवमानना की कार्यवाही चलाने पर विचार के लिए भेज दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा व न्यायमूर्ति बृजराज सिंह सिंह की खंडपीठ ने लक्ष्मी सिक्योरिटी गार्ड्स सर्विसेस फर्म की ओर से नगर निगम से जुडे एक टेंडर के मामले में दाखिल एक रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया।
वहीं हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के अवध बार एसोसिएशन ने न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा पर वकीलों के साथ आए दिन दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए, मुख्य न्यायमूर्ति से मांग किया है कि उन्हें स्थानांतरित करने की कार्यवाही शुरू की जाए। साथ ही अवध बार ने पूरी घटना पर विचार विमर्श के लिए 30 सितंबर को आपात बैठक बुला ली है। बार के महासचिव मनोज कुमार द्विवेदी ने बताया कि बैठक में न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा के खिलाफ पूर्व में प्राप्त हुई शिकायतों और वर्तमान घटना पर उनकी कोर्ट का बहिष्कार करने के संबंध में निर्णय लिया जायेगा।
दरअसल 27 सितंबर को नगर निगम, लखनऊ के एक टेंडर संबंधी मामले की सुनवाई चल रही थी। याची की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश चंद्र मिश्रा बहस कर रहे थे। बहस सुनने के बाद कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 30 सितंबर को लगा दी और कहा कि इस दौरान यदि नगर निगम लेटर आफ इंटेट जारी करता है तो वह न्यायालय के अग्रिम आदेशों के अधीन रहेगा।
हालांकि सतीश चंद्र मिश्रा की दलील थी कि चूंकि नगर निगम उसी दिन लेटर ऑफ इंटेंट जारी करने जा रहा है लिहाजा कोर्ट को अंतरिम आदेश जारी करना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने बिना नगर निगम का रिकॉर्ड देखे ऐसा आदेश पारित कराने से मना कर दिया। अवमानना के लिए संदर्भित किये जाने वाले आदेश में कहा गया है कि मना करने के बावजूद सतीश चंद्र मिश्रा बहस करते रहे। कहा गया है कि उन्होंने कोर्ट पर तंज भी कसा कि बिना रिकार्ड देखे, विपक्षी के हक में आदेश पारित कर दिया जाये और उनका केस खारिज कर दिया जाए।
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