मुरादाबाद : आसान नहीं दिव्यांग प्रमाणपत्र-पर्चा बनवाना, एक्स-रे व अन्य जांच के लिए भटकते हैं दिव्यांग

दिव्यांग प्रमाण पत्र- कहने को हर सोमवार को दिव्यांगों के लिए शिविर, पर विशेषज्ञ ही नहीं आते

मुरादाबाद : आसान नहीं दिव्यांग प्रमाणपत्र-पर्चा बनवाना, एक्स-रे व अन्य जांच के लिए भटकते हैं दिव्यांग

मुरादाबाद, अमृत विचार। दिव्यांग प्रमाणपत्र बनवाना आसान कार्य नहीं है। पहले अस्पताल की ओपीडी में पर्चा काउंटर तक पहुंचने की जद्दोजहद होती है। भीड़ से भी जूझना होता है। फिर घिसट-घिसट कर आयुष भवन तक पहुंचते हैं। यहां बारी के इंतजार में कई घंटे बीतते हैं। ऐसे में यदि आयुष भवन में दिव्यांगता का मूल्यांकन करने वालों ने हड्डी, कान आदि की जांच लिख दी तो उन्हें फिर अस्पताल जाकर डॉक्टर को खोजना पड़ता है। एक्स-रे लिख दिया तो पैथोलॉजी में अपनी बारी का घंटों इंतजार करना होता है।

दोपहर के 2:00 बज रहे थे। आयुष भवन के बाहर बैठे-बैठे घिसटते हुए दिव्यांग उवैश अपनी मां शबाना के साथ आ रहे थे। बताया कि वह पाकबड़ा से आए हैं। पहले भी वह दो बार शिविर में आ चुके हैं। सोमवार को फिर ई-रिक्शा से आए। डॉक्टर ने एक्स-रे के लिए लिख दिया है और एक महीने बाद फिर बुलाया है। आयुष भवन के बाहर ई-रिक्शे पर बैठे लईक ने बताया कि वह छह लोग मूंढपांडे के सिरसखेड़ा गांव से ई-रिक्शा से आए हैं। 1000 रुपये में रिक्शा बुक किया है। कुछ देर बाद अंकित, राजपाल, मकसूद भी आ गए, जो इसी ई-रिक्शा से कैंप में आए थे। इन लोगों ने अपनी दिव्यांगता दिखाते हुए कहा कि डॉक्टर ने जांच के लिए लिख दिया है। उन्हें फिर दोबारा अस्पताल की अव्यवस्थाओं से जूझना होगा। इनके साथी नियामतपुर इकरोटिया के मोहम्मद नवी दोनों पैरों से दिव्यांग हैं। इन्हाेंने बताया कि 25 साल पहले प्रमाणपत्र बना था। अब वह दिव्यांगता प्रतिशत बढ़वाने के लिए दौड़ रहे हैं। 

छजलैट के गंगा सिंह पांचवीं बार सोमवार को कैंप में दिव्यांग बेटी दीया को लेकर 300 रुपये खर्च कर ई-रिक्शा से आए थे। बड़ी बेटी शिवानी भी थी। इससे पहले जब भी आए तब कहीं डॉक्टर नहीं मिले तो कहीं बेटी की जांच में समस्या रही। हुसैनपुर से आए दिव्यांग शीबू व्हीलचेयर से आए थे। अव्यवस्था से नाराज दिखे। सवाल कर कहा कि जब प्रत्येक सोमवार को जिला अस्पताल के आयुष भवन में दिव्यांग चिकित्सा बोर्ड बैठता है तो इस बोर्ड के सभी चिकित्सकों को भी होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है। हड्डी, ईएनटी, मानसिक और बाल रोग विशेषज्ञ अस्पताल में अपने-अपने निश्चित कमरे में बैठते हैं। दिव्यांगों को इन्हें खोजना पड़ता है। शीबू खान ने बताया कि कैंप के निश्चित दिन पर आयुष भवन में डॉक्टर समय से नहीं बैठते हैं। दिव्यांग बहुत परेशान होते हैं।

बोर्ड के कई सदस्य शिविर से गैरहाजिर
दोपहर ढाई बजे के समय आयुष भवन में दिव्यांग चिकित्सा बोर्ड के सदस्य के तौर पर खुद प्रभारी डॉ. रामकिशोर, हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. शेर सिंह कक्कड़ व नेत्र सर्जन जूही सक्सेना बैठी थीं। इनके अलावा बोर्ड के अन्य सदस्यों में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. एके सिंह, मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. अभिनव कुमार, डॉ. धनंजय अस्पताल में अपने-अपने कक्ष में थे। दिव्यांगों की नाराजगी और व्यवस्थाओं के संबंध में दिव्यांग चिकित्सा बोर्ड के प्रभारी डॉ. रामकिशोर ने कहा कि यह जिम्मेदारी उनकी नहीं मुख्य चिकित्सा अधीक्षक की है। बताया गया कि बोर्ड के पास करीब 150 आवेदन आए हैं। इनमें 48 लोगाें के दिव्यांग प्रमाणपत्र बनाए गए हैं।

दिव्यांगों ने शिविर में गिनाईं समस्याएं

  • ओपीडी में पर्चा बनवाने में बहुत मुसीबत झेलनी पड़ती है।
  • शिविर में ही पर्चा काउंटर लगाने की मांग भी है।
  • शिविर में दिव्यांगों के लिए पेयजल तक की सुविधा हो।
  • दिव्यांगों के लिए व्हील चेयर तक नहीं है।
  • हड्डी रोग विशेषज्ञ से जांच कराने अस्पताल के जीने में सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है।
  •  जांच के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है। एक्स-रे रूम में भीड़ रहती है।


आईजीआरएस भी निपटाना रहता है। अस्पताल में राउंड करना और ओपीडी भी करनी रहती है। लेकिन, फिर भी विशेषज्ञ बोर्ड में पहुंचते हैं। वैकल्पिक तौर पर भी हम पर्चा काउंटर आयुष भवन में नहीं भेज सकते।- डा. संगीता गुप्ता, सीएमएस-जिला अस्पताल

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