इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : मां बेटी की प्राकृतिक अभिभावक

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला : मां बेटी की प्राकृतिक अभिभावक

प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिता के साथ रह रही बेटी की कस्टडी मां को देने के मामले में कहा कि नाबालिग बेटी की कस्टडी मां को देने से केवल इस आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता है कि अलगाव के समय बेटी पिता के साथ थी। मां, बेटी की प्राकृतिक अभिभावक है। चार वर्षीय बेटी की विभिन्न शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक जरूरतें उसकी मां की देखभाल और कस्टडी में बेहतर तरीके से पूरी हो सकती हैं।

उक्त आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने अमित धामा की अपील को खारिज करते हुए पारित किया। कोर्ट ने पाया कि बेटी को पिता की कस्टडी से हटाना कुछ समय के लिए बच्ची के लिए मनोवैज्ञानिक तनाव का कारण हो सकता है, लेकिन पक्षकारों के हितों को संतुलित किया जाना आवश्यक है। आमतौर पर नाबालिग बच्चों की कस्टडी मां को ही मिलती है, जब तक कि विशिष्ट कारणों से कोई अलग तरीका अपनाने की आवश्यकता ना हो।

अपीलकर्ता पिता ने परिवार न्यायालय,मेरठ के आदेश के खिलाफ मौजूदा याचिका दाखिल की थी, जिसमें उसकी चार वर्षीया बेटी की एक पक्षीय अभिरक्षा मां को सौंप दी गई थी। पिता ने तर्क दिया कि बेटी की देखभाल वह भली प्रकार से कर रहा था। ऐसे में उसकी कस्टडी मां को सौंपने की कोई जरूरत नहीं थी। मामले के अनुसार पक्षकारों का विवाह वर्ष 2010 में हुआ। उनके एक बेटा और एक बेटी है। पति ने तलाक की अर्जी दाखिल की थी, जिसके बाद पत्नी ने बेटी की कस्टडी के लिए अर्जी दाखिल की और परिवार न्यायालय ने बेटी की कस्टडी मां को देने का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ पिता ने हाईकोर्ट में वर्तमान प्रथम अपील दाखिल की।

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