प्रयागराज : शादी के वादे को शोषण के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता

प्रयागराज : शादी के वादे को शोषण के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता

अमृत विचार, प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादी का झांसा देकर दुष्कर्म और अन्य आरोपों के आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि शादी के वादे को शोषण के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, जो अन्य महिलाओं का शोषण करने के लिए ऐसे वादों का दुरुपयोग करते हैं, उन्हें न्यायालय से राहत नहीं मिलनी चाहिए।

उक्त आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकल पीठ ने रवि कुमार भारती उर्फ बिट्टू की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। याचिका में गौतमबुद्ध नगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा जारी गैर जमानती वारंट को रद्द करने और आगे की कार्यवाही को रोकने की मांग की गई थी। जनवरी 2019 में गौतम बुद्ध नगर के थाना फेज- तीन में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत एक महिला द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने कई साल पहले फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पीड़िता से दोस्ती की और बाद में उसे शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।

महिला ने दावा किया कि वह रिश्ते के दौरान दो बार गर्भवती हुई और दोनों अवसरों पर आरोपी ने उसे गर्भपात करने के लिए मजबूर किया। शिकायतकर्ता को जब यह पता चला कि आरोपी का दूसरी महिलाओं के साथ भी संबंध है तो उसने उससे इस बारे में बात की, तब आरोपी ने उसे धमकाया। कोर्ट के समक्ष यह प्रश्न था कि क्या शादी का वादा करके शारीरिक संबंध बनाने को झूठा बहाना माना जा सकता है, जिससे आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) के तहत अपराध बनता हो।

हालांकि याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि संबंध सहमति से बने थे और इसलिए आईपीसी की धारा 376 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है। दूसरी ओर अभियोजन पक्ष ने बताया कि अभियुक्त ने पीड़िता का बार-बार शोषण करने के लिए शादी के वादे का इस्तेमाल एक उपकरण के रूप में किया। अंत में कोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्कों और रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों की समीक्षा करने के बाद आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि अभियुक्त द्वारा अन्य महिलाओं के साथ संबंध बनाने और उसके कार्यों से शिकायतकर्ता के गर्भधारण और उसके बाद गर्भपात होने से यह प्रदर्शित होता है कि विवाह का वादा स्पष्ट रूप से झूठा था। अतः कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ जारी कार्यवाही और गैर जमानती वारंट को रद्द करने से इनकार कर दिया।

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