प्रयागराज : तलाक के लिए विक्षिप्तता का साक्ष्य देना आवश्यक

प्रयागराज : तलाक के लिए विक्षिप्तता का साक्ष्य देना आवश्यक

अमृत विचार, प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पागलपन के आधार पर तलाक चाहने वाले पति को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक के नियम बताते हुए कहा कि पति या पत्नी के पागलपन के कारण विवाह-विच्छेद की मांग करने वाले याची पति/ पत्नी को अपने साथी की मानसिक स्थिति को विकार युक्त सिद्ध करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत करने होते हैं।

विक्षिप्तता को तलाक का आधार बनाने वाले अधिनियम की धारा 13(1)(iii) के अनुसार याची पर यह सिद्ध करने का भार होता है कि विपक्षी असाध्य रूप से मानसिक अस्वस्थ है। उक्त धारा में मानसिक बीमारी को भली प्रकार परिभाषित करते हुए बताया गया है कि मानसिक विक्षिप्तता, जिसमें दिमाग का विकास रुक जाता है या अधूरा रह जाता है। मनोरोगी विकार या सिजोफ्रेनिया सहित मस्तिष्क का कोई अन्य विकार या विकलांगता आती है। उपरोक्त धारा के तहत मानसिक बीमारी सिद्ध करने के साक्ष्य प्रस्तुत करना अति आवश्यक है। कोर्ट ने पाया कि वर्तमान मामले में अपीलकर्ता ने कभी भी यह सिद्ध करने का प्रयास नहीं किया कि उसकी पत्नी का मानसिक संतुलन ठीक नहीं है या उसके मानसिक विकार के कारण अपीलकर्ता को उससे दूर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा।

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि अपीलकर्ता ने यह स्वयं स्वीकार किया था कि कथित बीमारी ठीक हो सकती है। अतः कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि जब तक विपक्षी पत्नी की अपरिवर्तनीय मानसिक स्थिति सिद्ध नहीं हो जाती और धारा 13(1) के तहत विवाह को समाप्त करने का उपयुक्त कारण नहीं मिल जाता, तब तक उक्त आधार पर तलाक नहीं मिल सकता। इसके अलावा पक्षकारों ने 7 साल तक सामान्य वैवाहिक संबंध का निर्वहन किया था। अंत में कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष में हस्तक्षेप करने का कोई आधार न पाते हुए पति द्वारा दाखिल अपील को खारिज कर दिया। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने शिव सागर की अपील को निराधार बताते हुए पारित किया।

मामले के अनुसार वर्ष 2005 में पक्षकारों के बीच विवाह संपन्न हुआ और वह जनवरी 2012 से अलग-अलग रह रहे थे। अपीलकर्ता पति ने पत्नी पर पागलपन और क्रूरता का आरोप लगाते हुए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(iii) के तहत तलाक याचिका दाखिल की, जिसे जिला जज, फतेहपुर में खारिज कर दिया। इसी आदेश को वर्तमान अपील के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दिया गया।

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