कासगंज: पौराणिक खजाने को सहजने की तैयारी, संरक्षित होगी विरासत

डीएम के साथ विशेषज्ञों की बैठक, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से पहुंचे प्रोफेसर

कासगंज: पौराणिक खजाने को सहजने की तैयारी, संरक्षित होगी विरासत

कासगंज, अमृत विचार। राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण के लिए की गई खुदाई में अब कासगंज क्षेत्र के गांव जखेरा में तमाम पौराणिक अवशेष मिल रहे हैं। जिन्हें विशेषज्ञ हजारों वर्ष पुराना बता रहे हैं। इधर पौराणिक खजानों को सहजने के लिए जिला प्रशासन द्वारा की गई पहल भी कारगर हो रही है। डीएम ने विशेषज्ञों की बैठक बुलाई। अलीगढ़ विश्व विद्यालय के प्रोफेसर भी पहुंचे। प्रशासन और विशेषज्ञों की टीम ने बैठक के बाद जखेरा पहुंच कर पौराणिक इतिहास की तमाम संभावनाए तलाशी हैं।

वैसे तो कासगंज जिले में तमाम ऐतिहासिक धरोहर हैं। जिनके संरक्षण की दरकार है। पिछले महीने डीएम मेधा रुपम यहां जब पौराणिक इतिहास की जानकारी ली, तो कुछ नया करने का इरादा किया। विशेषज्ञों के साथ चर्चा की। कुछ दिन पहले बैठक हुई। इसके बाद सभी विशेषज्ञ अपने अपने काम में जुट गए। इधर जब एनएचएआई द्वारा नामित कार्यदायी संस्था 530 बी राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए खुदाई कर रही थी, तो जखेरा में पौराणिक धरोहरों का पिटारा फूट पड़ा। यहां तमाम ऐतिहासिक धरोहर निकली। जिला प्रशासन ने एनएचएआई का काम रोक दिया। शुक्रवार को एएमयू के प्रोफेसर एवं पौराणिक विशेषज्ञ एमके पूंढीर कासगंज पहुंचे। उनके साथ कासगंज के विशेषज्ञ भी थे। डीएम मेधा रुपम के साथ बैठक की। बैठक में प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल हुए। जखेरा के इतिहास पर चर्चा हुई। उसके बाद टीम गांव जखेरा पहुंच गई। यहां विशेषज्ञों ने पाया कि तमाम ऐतिहासिक धरोहर हैं, जो करीब दो हजार वर्ष पुरानी प्रतीत होती हैं। पुराने सिक्के मिले। कुषाण काल की एक लेयर मिली। विभिन्न सभ्यताओ की लेयर भी देखने को मिली। हजारों साल पुराने घरेलू सामान के टुकडे भी मिले। इनको सहेज कर टीम अलीगढ़ ले गई है, जबकि धरोहरें कासगंज के कलेक्ट्रेट में सहेजी गई हैं। एसडीएम सदर  संजीव कुमार ने बताया कि जखेरा में कराया जा रहा कार्य फिलहाल रोक दिया गया है। यहां विशेषज्ञ जानकारी कर रहे हैं कि क्या पौराणिक महत्व है। कई अवशेष सहज लिए गए हैं। जिन्हें अलीगढ विश्वविद्यालय और कासगंज कलेक्ट्रेट में रखा जाएगा।  

दशकों पूर्व हुई थी खोदाई
यहां दस्तावेजो की माने तो साल 1860 से 1870 के दौरान विश्व के प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता अलेग्जेंडर कनिंघम ने जखेरा पुरातात्विक स्थल की पहली बार खोदाई की थी। जिसके बाद साल 1974 से लेकर 1987 के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने यहां तीन चरणों में खोदाई की। तीसरे चरण में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पुरातत्ववेत्ता एमडीएन साही ने जखेरा पुरातात्विक स्थल को लेकर सबसे बड़ा अनुसंधान किया। 

मिले थे इस तरह के अवशेष
अवशेषों के रूप में यहां से हड्डियां, लोहा, तांबा, मोती, सोने के तार, आभूषण, कंघी, पक्के फर्श, पक्के घर, ग्रेवल, चूना लेप, पोस्ट होल, हसिया के साथ मिट्टी के पके हुए व चित्रित वर्तन प्राप्त हुए थे। अभी यहां ओर भी अवशेष होने की संभावना है।  

इनकी  भी सुनें
महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय बरेली में प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग के पुरातत्ववेत्ता डॉ. अनूप रंजन मिश्रा बताते हैं कि, जखेरा पुरातात्विक स्थल से तृतीय संस्कृति अर्थात एक हजार ईसा पूर्व की चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति के प्रमाण मिले हैं। जिसे उत्तरकाल एवं उत्तरवैदिककाल कहा जाता है। इसे महाभारत का समकाल भी माना जाता है। यहां उस दौर में गंगा वैली की एक सबसे मॉर्डन कॉलोनी मौजूद थी। 

क्या बोले इतिहास के जानकार
भारत सरकार शिक्षा मंत्रालय में प्रोफेसर योगेंद्र मिश्र बताते हैं कि, कासगंज शहर से पश्चिम दिशा में पांच किलोमीटर की दूरी पर काली नदी के किनारे स्थित पुरातात्विक स्थल जखेरा को महाभारतकाल के समय यज्ञखेडा के नाम से जाना जाता था। कुछ इतिहास कार इस स्थान को यक्षखेड़ा भी बताते हैं।