हल्द्वानी: पुलिस की लापरवाही से बनभूलपुरा हिंसा के आरोपियों को मिली जमानत

हल्द्वानी: पुलिस की लापरवाही से बनभूलपुरा हिंसा के आरोपियों को मिली जमानत

हल्द्वानी, अमृत विचार। एक मामले में हाईकोर्ट ने बनभूलपुरा हिंसा के 50 आरोपियों को एक साथ जमानत दे दी और इसकी वजह बनी पुलिस की लापरवाही। जिस चार्जशीट को तीन माह के भीतर न्यायालय में प्रस्तुत करना था, पुलिस उसे चार माह बीतने के बाद भी पेश नहीं कर सकी। बावजूद इसके निचली अदालत ने तो आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी, लेकिन हाईकोर्ट ने सभी को एक साथ जमानत दे दी। इन 50 आरोपियों के साथ अब तक कुल 51 आरोपियों को जमानत मिल चुकी है।

बनभूलपुरा हिंसा मामले में तीन अलग-अलग मुकदमे दर्ज किए गए थे। पहला मुकदमा नगर निगम की ओर से, दूसरी बनभूलपुरा थाना और तीसरा तत्कालीन मुखानी थानाध्यक्ष प्रमोद पाठक ने दर्ज कराया था। इस मामले में 107 लोगों की गिरफ्तारी हुई, जिसमें महिलाएं भी शामिल थीं। आरोपियों पर बलवा समेत कई गंभीर धाराओं के साथ यूएपीए भी लगाया था। इन तीनों मामलों की जांच सीओ रामनगर, सीओ भवाली और सीओ लालकुआं कर रहे थे।

नियम के मुताबिक मुकदमा दर्ज होने के 90 दिन (तीन माह) के भीतर पुलिस चार्जशीट न्यायालय में दाखिल करनी होती है, लेकिन पुलिस ऐसा नहीं कर पाई। 
 तीन माह गुजरे तो आरोपियों की ओर से निचली अदालत में जमानत याचिका लगाई गई, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया था। आरोपियों पर लगे गंभीर आरोपों और मामले की गंभीरता को देखते हुए निचली अदालत ने उन्हें जमानत देने से इंकार कर दिया था। इसके बाद सभी आरोपियों ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी और हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाले सभी 50 आरोपियों को जमानत दे दी। 

क्‍या हुआ था?
हल्द्वानी : इसी वर्ष आठ फरवरी को नगर निगम और प्रशासन की टीम पुलिस की सुरक्षा में मलिक के बगीचे से अतिक्रमण हटाने के लिए पहुंची थी। जिसके बाद स्थानीय भीड़ हिंसक हो गई। इस भीड़ ने पत्थरबाजी और आगजनी की। बनभूलपुरा थाना भी फूंक दिया। घटना के बाद पुलिस ने सख्त कार्रवाई करते हुए हिंसा में शामिल होने के आरोप में 107 लोगों को गिरफ्तार किया। उनके खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। इसके बाद सभी आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।

सरकार ने कोर्ट को क्‍या बताया
 निचली अदालत ने सभी आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी थी और डिफॉल्‍ट बेल देने से भी इंकार कर दिया था। सरकार ने कोर्ट को बताया कि अतिरिक्त समय जो लगा, उसमें इनके खिलाफ सीसीटीवी के रिकॉर्ड, पेट्रोल बम और मेडिकल रिपोर्ट एकत्र करनी थी और जांच की जानी थी, इसलिए समय लगा, लेकिन कोर्ट ने नहीं माना। उत्तराखंड हाईकोर्ट की डबल बेंच ने इस मामले में आरोपियों की जमानत याचिका पर सुनवाई की और उनकी जमानत मंजूर कर ली।