प्रयागराज : बिना किसी वैध परिस्थिति के जीवनसाथी का साथ न देना क्रूरता

प्रयागराज : बिना किसी वैध परिस्थिति के जीवनसाथी का साथ न देना क्रूरता

अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिना किसी उचित कारण के जीवनसाथी का साथ देने से इनकार करने को हिंदू विवाह कानून के तहत क्रूरता माना है। कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि कोई भी व्यक्ति जो वैवाहिक संबंध में प्रवेश करता है, वह अपने चुने हुए जीवनसाथी के साथ अपनी संगति का आनंद लेने और उसे साझा करने का सामाजिक तथा व्यक्तिगत दायित्व लेता है।

एक व्यक्ति दूसरे को बिना किसी कारण के जब अपनी संगति से पूरी तरह से वंचित करता है तो इसे क्रूरता ही मानी जाएगी। कोर्ट ने हिंदू विवाह के संदर्भ में क्रूरता की अवधारणा को परिभाषित करते हुए कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है, ना कि केवल एक सामाजिक अनुबंध, जिसमें एक साथी बिना किसी वैध परिस्थिति के दूसरे को छोड़ देता है। ऐसा आचरण विवाह की आत्मा और भावना को नष्ट कर देता है। हिंदू विवाह की आत्मा की मृत्यु पति या पत्नी के लिए क्रूरता का कारण बन सकती है, जो न केवल शारीरिक संगति से बल्कि सभी स्तरों पर अपने पति या पत्नी के साथ पूरी तरह से वंचित हो जाता है।

उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनाडी रमेश की खंडपीठ ने श्रीमती अभिलाषा श्रोती की प्रथम अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए की। मामले के अनुसार वर्ष 1989 में पक्षकारों का विवाह संपन्न हुआ। दंपति के बीच वैवाहिक रिश्ता मुश्किलों से भरा था। शादी के कुछ साल बाद दंपति अलग हो गए, लेकिन 1999 में उनके बीच कुछ समय के लिए सुलह हो गया। इसके बाद वर्ष 2001 में वे हमेशा के लिए अलग हो गए। पत्नी ने वर्तमान अपील प्रधान न्यायाधीश परिवार न्यायालय झांसी द्वारा पारित तलाक के आदेश को चुनौती देते हुए दाखिल की। पत्नी की अपील पर विचार करते हुए कोर्ट ने पति द्वारा लगाए गए क्रूरता के आरोपों को बरकरार रखा।

कोर्ट ने पाया कि बिना किसी वैध कारण के पत्नी अपना वैवाहिक घर छोड़ कर चली गई थी और पति द्वारा सुलह करने के सभी प्रयासों के बावजूद वापस नहीं लौटी। इसके अलावा पत्नी द्वारा लगाए गए दहेज की मांग और घरेलू हिंसा के आरोपों को कोर्ट ने कमजोर पाया। इसी के साथ अंत में कोर्ट ने पिछले 23 वर्षों से पत्नी द्वारा वैवाहिक संबंध को पुनर्जीवित न करने का इरादा देखते हुए परिवार न्यायालय के द्वारा दी गई तलाक की डिक्री में हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा। अतः कोर्ट ने तलाक के आदेश को बरकरार रखते हुए पत्नी को स्थाई गुजारा भत्ता के रूप में 5 लाख रुपए देने का आदेश दिया।

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