प्रयागराज: 2001 से लंबित दुष्कर्म मामले के आरोपी को हाईकोर्ट ने किया बरी

प्रयागराज: 2001 से लंबित दुष्कर्म मामले के आरोपी को हाईकोर्ट ने किया बरी

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2001 से लंबित दुष्कर्म मामले के आरोपी को बरी करते हुए अपने आदेश में कहा कि 6 वर्ष से कम उम्र की बच्ची से दुष्कर्म करने पर उसके शरीर पर चोटों के निशान अवश्य आएंगे। इस तरह के साक्ष्य मेडिकल दस्तावेजों और डॉक्टर की गवाही से सुपुष्ट होने चाहिए। ऐसा न होने की स्थिति में दुष्कर्म के अपराध को संदिग्ध दृष्टि से देखा जा सकता है।

उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डॉ. गौतम चौधरी की खंडपीठ ने हीरा की आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए की। आरोपी के विरुद्ध आईपीसी की धारा 376 के तहत पुलिस स्टेशन जहांगीराबाद बुलंदशहर में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। कोर्ट ने पाया कि पीड़िता की मेडिकल जांच घटना के समय से साढ़े छः घंटे बाद की गई थी।

चिकित्सीय जांच करने वाले डॉक्टर का कहना है कि पीड़िता के अंदरूनी अंगों पर किसी तरह की बाहरी चोट के निशान नहीं मिले हैं। ऐसे में दुष्कर्म की संभावना नहीं बनती है। इस महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज करते हुए ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 2002 में याची को आजीवन कारावास की सजा सुना दी‌। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी पाया कि तथ्यात्मक दावों और पीड़िता के बयान चिकित्सा साक्ष्यों से मेल नहीं खाते।

मुकदमे के दौरान पीड़िता का बयान दर्ज करते समय यह भी देखा गया कि उसने सवालों के जवाब में केवल अपनी गर्दन हिलाई थी, जिसे पूरी तरह विश्वसनीय नहीं माना जा सकता है, क्योंकि 6 वर्ष की बच्ची पूछे गए प्रश्नों के मौखिक उत्तर देने में सक्षम होती है। अतः कोर्ट ने मेडिकल साक्ष्यों और किसी बाहरी चोट के अभाव में ट्रायल कोर्ट के आक्षेपित आदेश को रद्द करते हुए आरोपी को बरी कर दिया।

पीड़िता के पिता द्वारा दर्ज प्राथमिकी में दावा किया गया था कि 31 मार्च 2001 को जब शिकायतकर्ता की बेटी घर में अकेली थी तो आरोपी उसे बहला-फुसलाकर गेहूं के खेत में ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों पर बिना विचार किए आरोपी को दोषी करार दे दिया, जिसे चुनौती देते हुए अभियुक्त ने वर्तमान अपील हाईकोर्ट में दाखिल की।

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