बरेली: IVRI ने चिह्नित की देसी गायों की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति, वैज्ञानिक अध्ययन में रुहेलखंडी को बताया बेहतर

बरेली: IVRI ने चिह्नित की देसी गायों की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति, वैज्ञानिक अध्ययन में रुहेलखंडी को बताया बेहतर

बरेली, अमृत विचार : आईवीआरआई ने रुहेलखंड क्षेत्र में एक अलग किस्म और अतिरिक्त विशेषताओं वाली देसी गाय को चिह्नित किया है जिसे रुहेलखंडी गाय नाम देने के बाद राष्ट्रीय पशु आनुवंशिकी संसाधन ब्यूरो यानी एनबीएजीआर में रजिस्ट्रेशन कराने की प्रक्रिया शुरू की गई है। वैज्ञानिक अध्ययन में इस गाय का दूध ए-2 प्रोटीन से युक्त होने के कारण दूसरी देसी गायों के दूध से बेहतर पाया गया जिसमें वजन और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखने की क्षमता है। 

रुहेलखंडी मादा में ज्यादा प्रजनन क्षमता और नर के शारीरिक बल के कारण इसे किसानों के लिए भी बेहतर करार दिया गया है।आईवीआरआई की ओर से एक परियोजना के तहत कई साल से गायों पर अध्ययन किया जा रहा है।

इस प्रोजेक्ट के प्रधान अन्वेषक डॉ. अनुज चौहान के मुताबिक कुछ समय पहले एक अलग शारीरिक संरचना वाली गाय को चिह्नित कर अध्ययन किया गया तो पता लगा कि यह गाय पांच लीटर दूध देती है, इस प्रजाति के नर में भी जुताई की क्षमता सामान्य से ज्यादा है।

इन्हीं विशेषताओं के आधार पर इसे रुहेलखंडी गाय नाम देकर उसके एनबीएजीआर में पंजीकरण के लिए आवेदन किया। जांच करने करनाल से आई एनबीएजीआर की टीम ने भी इस गाय की प्रजाति को सामान्य देसी गाय से भिन्न माना और दूसरे मानकों पर काम करने की अनुमति दे दी।

डॉ. चौहान ने बताया कि सर्वे के दौरान अब तक बरेली मंडल में रुहेलखंडी गाय के 418 नर और करीब 13 सौ मादा चिह्नित की गई हैं। इस गाय को पालने वाले 80 प्रतिशत लोग ओबीसी वर्ग में यादव, मौर्य, शाक्य और गंगवार जाति के हैं। एनबीएजीआर में में इस गाय का पंजीकरण से होने से उसके आनुवंशिक संरक्षण, अनुसंधान और विकास, नस्ल के प्रमाणीकरण, सरकार और दूसरे संस्थानों को किसानों और पशुपालकों के लिए नीतियां बनाने जैसी प्रक्रिया शुरू हो पाएगी।

उत्तर प्रदेश में देसी गाय की छठी प्रजाति
एनबीएजीआर में 220 जर्म प्लाज्म (पशु प्रजाति) का पंजीकरण है जिनमें सिर्फ 53 गाय की प्रजाति हैं। इनमें लखीमपुर खीरी की खेरीगढ़, पीलीभीत की पोवार, बुंदेलखंड की केनकाथा, बनारस की गंगातीरी, मथुरा की मेवाती समेत यूपी की गायों की पांच प्रजाति शामिल हैं। रुहेलखंडी ब्यूरो में पंजीकृत होने वाली प्रदेश की छठी गाय होगी।

न गर्मी का असर, न ही किलनी का डर
रुहेलखंडी गाय तापमान और एक्टोपैरासाइट यानी किलनी प्रतिरोधी भी है। रुहेलखंडी बैलों की खेत जोतने और भार ढोने की 40 से 42 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी कम नहीं होती। गाय का दूध उत्पादन भी जस का तस रहता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होने से ये गाय बहुत कम बीमार होती है और उसमें किलनी या दूसरे रोग नहीं लगते।

बिसौली में छोटेलाल की गाय सर्वश्रेष्ठ
सर्वे में चिह्नित 1300 गायों में बिसौली (बदायूं) के छोटेलाल की गाय को सर्वश्रेष्ठ माना गया। 20 साल की इस गाय के दूध उत्पादन में 14 बछियों-बछड़ों को जन्म देने के बाद भी कमी नहीं आई। इसी आधार पर माना गया कि रुहेलखंडी गाय की प्रजनन क्षमता उच्चतम स्तर की है।

ये हैं विशेषताएं...
मादा : सफेद और भूरा रंग, पांच लीटर दूध के रोज उत्पादन की क्षमता, दूध में उच्चस्तरीय ए-2 प्रोटीन, 4.5% फैट और 8% टोटल सॉलिड, औसत 210 दिन के ब्यांत में एक हजार लीटर दूध, सामान्य देसी गाय से ज्यादा प्रजनन क्षमता।

नर : सामान्य बैल से अधिक शारीरिक बल, दो शिफ्ट में लगातार छह घंटे काम, सामान्य से अधिक खेतों में हल और डनलप खींचने की क्षमता, गन्ने के खेत में ट्रैक्टर और हाथों से जोतने का बेहतर विकल्प।

रुहेलखंडी गाय एक द्विद्देशीय नस्ल है जिसमें दूध उत्पादन, जुताई और भार ढोने के महत्वपूर्ण गुण हैं। रोग और तापमान रोधी जैसे कई और खास गुण हैं। एनबीएजीआर में इसका पंजीकरण होने से रुहेलखंड क्षेत्र के किसानों को कई सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकेगा- डॉ. त्रिवेणी दत्त, निदेशक आईवीआरआई

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