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अदालत का फैसला : विसंगतियों के आधार पर आजीवन कारावास भुगत रहे 71 वर्षीय आरोपी को मिली रिहाई
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अमृत विचार, प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कई वर्षों से लंबित आपराधिक मामलों में ट्रायल कोर्ट द्वारा अपूर्ण जांच और गवाही के आधार पर आदेश पारित करने की परंपरा पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मामलों में स्पष्ट रूप से गवाहों और साक्ष्यों में विसंगतियां दिखने के बावजूद ट्रायल कोर्ट आरोपियों के खिलाफ आदेश पारित कर देती है, जिन्हें रद्द किया जाना आवश्यक होता है अन्यथा आरोपी व्यक्ति बिना किसी कारण अनावश्यक सजा भुगतने के लिए विवश हो जाएगा।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने 1983 में अपर सत्र न्यायाधीश, गाजीपुर के फैसले के खिलाफ खलील व तीन अन्य द्वारा दाखिल आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए पारित किया। सभी अपीलकर्ताओं को आईपीसी की धारा 302/34 के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। अपील के लंबित रहने के दौरान अपीलकर्ता खलील, जहीर और जैनुद्दीन की मृत्यु हो गई।
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