एआई पर अंतर्राष्ट्रीय संधि

एआई पर अंतर्राष्ट्रीय संधि

हर क्षेत्र में आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का दायरा और हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। एआई से आने वाले वर्षों में मानव जीवन के लगभग हर पहलू के बदलने की उम्मीद है। पिछले दिनों एआई के उपयोग को नियंत्रित करने वाली कानूनी रूप से बाध्यकारी पहली अंतर्राष्ट्रीय संधि को मंजूरी दी गई। यूरोप परिषद का यह कदम कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

यह संधि एआई तकनीक का ज़िम्मेदारी के साथ इस्तेमाल किए जाने को प्रोत्साहित करती है। यानी यह संधि समानता, गैर-भेदभाव, निजता और लोकतांत्रिक मूल्यों के सैद्धांतिक उद्देश्यों के मुताबिक एआई के उपयोग को बढ़ावा देती है। संधि गैर-यूरोपीय देशों के लिए भी खुली है और एक कानूनी ढांचा तैयार करती है जो एआई सिस्टम के पूरे जीवनचक्र को कवर करती है और जिम्मेदार नवाचार को बढ़ावा देते हुए उनके द्वारा उत्पन्न होने वाले जोखिमों को संबोधित करती है। गौरतलब है कि एआई पर वैश्विक साझेदारी की जरूरत पर भारत हमेशा से बल देता रहा है। 

वैश्विक साझेदारी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 21वीं सदी के लिए एआई सबसे बड़ा वरदान बन सकता है तो यह 21वीं सदी को तबाह करने में भी अहम भूमिका निभा सकता है। इसलिए नैतिक मूल्यों पर आधारित एआई के लिए वैश्विक सहमति से फ्रेमवर्क बनाने की आवश्यकता है। देखा जाए तो यह संधि एआई के उपयोग को लेकर वैश्विक स्तर पर एक कानूनी मानक स्थापित करना चाहती है। लेकिन एआई को नियम-क़ानून के दायरे में बांधना बेहद मुश्किल है।

इसकी एक बड़ी वजह यह है कि एआई का विस्तार बहुत व्यापक है, यानी एआई किसी खास क्षेत्र या प्रौद्योगिकी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका विस्तार मशीन लर्निंग, कंप्यूटर विज़न और न्यूरल नेटवर्क्स यानी एआई की एक विधि जो कंप्यूटर को मानव मस्तिष्क से प्रेरित होकर आंकड़ों का विश्लेषण करना सिखाती है, जैसी अत्याधुनिक और लगातार विकसित हो रही प्रौद्योगिकियों तक फैला हुआ है। संधि की लचीली कार्यान्वयन रणनीति और स्वतंत्र निरीक्षण तंत्र महत्वपूर्ण घटक हैं, फिर भी दायित्वों और देयताओं पर स्पष्ट दिशा निर्देशों की कमी व्यावहारिक लागू करने और प्रवर्तन में बाधा उत्पन्न करती है।

वैसे भी अंतर्राष्ट्रीय संधि का मसौदा तैयार करने और विचार-विमर्श के दौरान सिर्फ यूरोपीय परिषद के सदस्य देश और कुछ अन्य देशों ने ही भाग लिया है, बाकी दुनिया के राष्ट्रों की इसमें कोई भागीदारी नहीं है। जाहिर है कि इससे इस संधि की वैधानिकता पर सवाल खड़े होते हैं और यह कहीं न कहीं इसे ज़मीनी स्तर पर लागू करने में रुकावटें पैदा कर सकता है।