यशोदा बनने को तैयार मां, पर कानूनी दांव-पेंच में उलझ गई उसकी ममता, जानें क्या है मामला

यशोदा बनने को तैयार मां, पर कानूनी दांव-पेंच में उलझ गई उसकी ममता, जानें क्या है मामला

बाराबंकी। अमृत विचार। किसी दूसरे की ही सही, लेकिन 10 साल बाद एक महिला की गोद में औलाद आई। जिसके रोने पर वह महिला भी बेचैन हो उठती और उसकी आंखों से आंसू छलकने लगते। पंद्रह दिनों तक उस महिला ने मां बनकर बड़े लाड और प्यार से उसको पाला। जहां जन्म देने वाली मां ने उस बच्चे को झाड़ियों के बीच मरने के लिये छोड़ दिया था तो यशोदा बनकर इस महिला ने उसे अपना लिया। इस यशोदा और नंद बाबा का चमन अब गुलजार हो उठा था। बच्चा भी नंद के घर आनंद में था। लेकिन तभी एक दिन उनसे उस बच्चे को जुदा कर दिया गया। अब यह दोनों उस बच्चे की एक झलक तक पाने को तरस रहे हैं। क्योंकि इस यशोदा मां की ममता कानूनी दांव-पेंच में उलझकर रह गई है।

ये है मामला 
मामला बाराबंकी जिले में सफदरगंज थाना क्षेत्र अंतर्गत अम्बौर गांव से जुड़ा है। जहां के दंपत्ति को एक नवजात बच्चा पास के ही उधौली गांव में लावारिस अवस्था में सड़क किनारे झाड़ियों में पड़ा मिला था। जिसे देखकर वह उसे लेकर घर चले आए। लेकिन जब इस बात की जानकारी बाल कल्याण समिति को मिली तो उन्होंने उस बच्चे को अपनी कस्टडी में ले लिया और अब उस मां की ममता गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया में फंसती नजर आ रही है। दंपति उस बच्चे को गोद लेने के लिये जिलाधिकारी समेत तमाम लोगों से फरियाद कर रहे हैं, लेकिन सीडब्ल्यूसी खुद को कानूनी रूप से मजबूर बता रही है। सीडब्ल्यूसी के मुताबिक यह नि:संतान दंपति कारा में पंजीकृत होकर ही इस बच्चे को गोद ले सकते हैं। यहां तक कि सीडब्ल्यूसी में स्टेट वेलफेयर बोर्ड से बच्चे को लखनऊ अनाथालय भेजने के संबंध में आदेश भी जारी करा लिया है। जिसके चलते दंपति के सामने बच्चे को गोद लेने को लेकर मुश्किलें काफी बढ़ती दिख रही हैं।

महिला ने बताई आपबीती
महिला मधू के मुताबिक उनके पति मनीष अवस्थी को जब यह नवजात बच्चा मिला, तो उसके शरीर पर काफी चीटियां लपटी थीं। लोग वहां भीड़ लगाकर उसका वीडियो बना रहे थे। नवजात के गले में एक रुमाल भी काफी कसा बंधा हुआ था। जिसके बाद उनके पति बच्चे को अपने साथ घर ले आए। जब पुलिस, एनजीओ और सीडब्ल्यूसी को इस बारे में पता चला तो वह लोग बच्चे को जिला महिला अस्पताल लेकर आ गये। पहले उन लोगों ने कहा कि बच्चा आप लोगों को ही मिलेगा। लेकिन अब बच्चा देने से मना कर रहे हैं। मनीष ने बताया कि बच्चे की सुपुर्दगी के लिये उन्होंने जिलाधिकारी से भी गुहार लगाई। लेकिन फिर भी उन्हें बच्चा नहीं सौंपा जा रहा। वह लोग 15 दिनों से अस्पताल में ही हैं। मनीष के मुताबिक उन लोगों की कोई औलाद नहीं है। ऐसे मे वह इस बच्चे को गोद लेकर उसकी अच्छे से परवरिश करेंगे।

क्या है नियम
जो बच्चे इस तरह से परित्यक्त पाए जाते हैं। उसकी सूचना अगर पुलिस, चाइल्ड लाइन या किसी अन्य एनजीओ के माध्यम से समिति को मिलती है, तो ऐसे में सबसे पहले बच्चे को इलाज के लिये अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। उसके बाद बच्चे के परिवार की खोजबीन की जाती है। 60 दिन की अवधि तक अगर उस बच्चे के असली मां-बाप का पता नहीं चलता तो हम बच्चे को दत्तक गृहण इकाई के पास भेज देते हैं। इसके बाद जो नि:संतान दंपत्ति कारा में पंजीकृत होते हैं, वह उस बच्चे को गोद ले सकते हैं। ऐसे में इस दंपत्ति से भी अपील है कि वह कारा में पंजीकृत होकर इस बच्चे को गोद लें। जिससे आगे चलकर कोई भी परिवार इस बच्चे पर अपना कानूनी हक न जता सके।
बाला चतुर्वेदी, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति।


ये है निर्देश 
स्टेट वेलफेयर बोर्ड के सदस्यों द्वारा बच्चे को लखनऊ के अनाथालय के पास भेजने के निर्देश जारी किए गए हैं। जबकि स्थानीय स्तर पर ही अम्बौर गांव के निवासी दंपति उस बच्चे को गोद लेना चाहते हैं। इसलिए अब इस मामले को राज्य स्तरीय आयोग के पास रेफर किया जाएगा। बच्चे को फिलहाल बाराबंकी जिला महिला अस्पताल में ही रखा जायेगा। राज्य स्तरीय आयोग बच्चे के संबंध में जो भी निर्णय लेगा उसी के मुताबिक आगे की करवाई की जाएगी।
सत्येंद्र कुमार, डीएम, बाराबंकी

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