होली और लोकतंत्र का पर्व

होली और लोकतंत्र का पर्व

होली प्राचीन समय से ही विशेष महत्व का पर्व रहा है, जो समाज में उमंग के साथ-साथ सामाजिक समरसता का भी संदेश देता है। होली न केवल भारत में,बल्कि संपूर्ण विश्व में अलग-अलग ढंग से मनाया जाने वाला त्योहार है। होली सबका उत्सव है। मनुष्यों के साथ देवों का भी।

इसमें गरीब, अमीर का भेद नहीं है। श्वेत-श्याम, वर्ण-सवर्ण सभी साथ-साथ होली खेलते हैं। होली पर भारत सामगान हो जाता है। होली गीतों में व्याकरण नहीं चलता। यहां आनंद ही संज्ञा है और आनंद ही सर्वनाम। अन्य उत्सवों के भांति होली का कोई सुव्यवस्थित ढंग नहीं है। होली में आनंद ही गोत्र है और आनंद ही सबकी जाति। तैत्तिरीय उपनिषद् में आनंद की व्याख्या है,‘सैषा आनंद मीमांसा भवति।’ कहते हैं कि मनुष्य स्वस्थ हो।

शिक्षित हो। बल संपन्न हो। धन संपदा हो, यह मनुष्य को आनंद से भरता है, लेकिन इसका सौ गुना आनंद मनुष्य गंधर्व आनंद होता है। गंधर्व आनंद गीत-संगीत और नृत्य से परिपूर्ण होता है। इसमें शीत और ग्रीष्म का मिलन है। यहां मर्यादा, शील और स्वच्छंदता साथ-साथ है। होली असंभव को संभव करती है।

इस बार होली के साथ देश में लोकतंत्र का पर्व भी शुरू हो चुका है। भले ही लोकतंत्र का पर्व पांच साल बाद आता है, लेकिन इस बार होली के साथ इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है। एक ओर होली के गीत हवा में तैर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर चुनावी नारे भी हवा तैरने लगे हैं।

साथ ही जिस तरह होली पर होलियारे अपने साथियों को रंगने के लिए घेराबंदी और जुगत लगाते हैं, उसी प्रकार चुनावी होलियारों की भी लोकतंत्र के पर्व पर अपने प्रतिद्वंद्वियों को हार के रंग में रंगने की भी जुगत शुरू हो चुकी है। नेताओं को यहां होली से भाईचारे की सीख लेते हुए यह बात याद रखनी होगी कि उनका विरोधी सिर्फ चुनावी प्रतिद्वंद्वी है, न कि उनका दुश्मन है।

देश में जिस तरह राजनीतिक विद्वेष और वैमनस्यता बढ़ रही है, राजनेताओं को चाहिए कि होली की आग में उसका दहन कर देश और समाज को एकता और सद्भावना का संदेश दें। इसी तरह देश की आवाम भी अपने आपसी द्वेष, ईर्ष्या और कटुता को त्याग कर होली पर्व के भाईचारे के संदेश को आत्मसात कर समाज की एकता के लिए आगे आए।

यह इसलिए भी जरूरी है कि जब देश के विभिन्न क्षेत्रों में नकारात्मकता बढ़ रही है, तब इसकी आवश्यकता कहीं अधिक है कि होली के माध्यम से आपसी एकता, शांति एवं सद्भाव के रंगों को और गाढ़ा किया जाए। यह बात सभी को समझनी होगी कि सामूहिक समाज ही किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति होती है। इससे बेहतर और कुछ नहीं कि इस होली पर आपसी प्रेम और सकारात्मकता के विविध रंगों से तन के साथ मन भी भीगे।

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