मध्य पूर्व में संकट

मध्य पूर्व में संकट

इजराइल और ईरान के बीच जारी संघर्ष मध्य-पूर्व के दो प्रबल विरोधियों के बीच बढ़ते तनाव को उजागर करता है। ईरान-इजराइल जंग का असर वैश्विक राजनीति पर ही नहीं बल्कि दुनिया के व्यापार पर भी पड़ सकता है। यदि भू-राजनीतिक तनाव बढ़ता है तो आपूर्ति में व्यवधान के कारण कमोडिटी की कीमतें बढ़ जाएंगी। 

वैश्विक स्तर पर, भू-राजनीतिक तनाव के कारण मुद्रास्फीति उच्च बनी रहेगी क्योंकि इससे कच्चे तेल की कीमतें और तांबा, जस्ता, एल्युमीनियम, निकेल आदि वस्तुओं की कीमतें प्रभावित होंगी। तनाव कम करने या शांतिपूर्ण समाधान के लिए संवाद के कूटनीतिक प्रयासों की विफलता के बाद सैन्य कार्रवाई ही एकमात्र विकल्प बचेगा, जिससे क्षेत्रीय तनाव में वृद्धि की संभावना बढ़ जाएगी। 

हालांकि वैश्विक मंदी की आशंका के बीच भारत को फायदा हो सकता है। क्योंकि भारत विदेशी निवेशकों की पहली पसंद बना हुआ है। भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है। वह अपनी पेट्रोलियम खरीद का एक बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व से आयात करता है। ईरान ओपेक देशों में शामिल तीसरा सबसे बड़ा क्रूड ऑयल प्रोड्यूसर है। इसलिए तेल के संकट को ईरान और इजराइल का युद्ध और बड़ा कर रहा है। 

विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान-इजराइल के बीच तनाव के मद्देनजर यूरोप में भारत का निर्यात बाधित होगा। भारत के व्यापार सचिव सुनील बर्थवाल ने कहा कि नीतिगत हस्तक्षेप तभी होगा जब हम व्यापारियों के सामने आने वाली समस्याओं को समझेंगे। उस अभ्यास के आधार पर, जो भी आवश्यक होगा सरकार निश्चित रूप से उस पर ध्यान देगी। 

इजराइल और ईरान के बीच टकराव कम करने का भारत का आह्वान क्षेत्र की राजनीति की जटिलता को पहचानने के बारे में है। भारत के लिए ये संकट इसलिए और बड़ा है क्योंकि वह ईरान और इजराइल दोनों का ही मित्र है। वह किसी एक का पक्ष नहीं ले सकता है। ईरान-इजराइल टकराव पर भारत के दृष्टिकोण का महत्व है। यदि ये भारत को एक दृष्टिकोण का पक्ष लेते हुए देखते हैं तो इससे क्षेत्र में शांति को नुकसान पहुंच सकता है। 

भारत को प्रमुख क्षेत्रीय प्रतिभागियों मिस्र, ईरान, इजराइल, कतर, तुर्की, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ अपने जुड़ाव को हमेशा संतुलित रखना होगा। इजराइल की व्यापक रूप से मौजूद इस धारणा को देखते हुए कि परमाणु-सशस्त्र ईरान इज़राइल के अस्तित्व के लिए एक संभावित खतरा है, उसके द्वारा प्रतिशोध की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का सम्मान करना चाहिए। क्षेत्र में दीर्घकालिक सुरक्षा, शांति एवं स्थिरता के लिए दो-राज्य समाधान ही एकमात्र संभव विकल्प है। 

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