बरेली: होली पर मिलावटी मावा बिगाड़ सकता है आपकी सेहत, ऐसे करें असली-नकली की पहचान

होली में बढ़ जाती है मावे की डिमांड, हो जाते है मिलावटखोर सक्रिय 

बरेली: होली पर मिलावटी मावा बिगाड़ सकता है आपकी सेहत, ऐसे करें असली-नकली की पहचान

बरेली, अमृत विचार। होली का पर्व नजदीक है। इस पर्व में मीठे पकवान में सबसे ज्यादा गुजिया की डिमांड रहती है। इसको बनाने के लिए मावा (खोया) की जरूरत पढ़ती है। जिस कारण होली पर बाजार में मावा की डिमांड बढ़ जाती है। डिमांड बढ़ने के साथ ही मिलावटखोर भी सक्रिय हो जाते हैं। मिलावटी मावा खाने से लोगों की सेहत खराब हो जाती है। इसलिए मिलावटी मावा खदीरने से बचना चाहिए। जिसके लिए हमे सही मावे की पहचान होना जरूरी है। तो चलिए आपको बतातें है कि असली मावा की क्या पहचान है। 

कुतुबखाना खोया मंडी में मावा व्यापारी सज्जाद ने बताया कि वह लंबे समय से मावा का कारोबार कर रहे हैं। असली मावा और नकली मावे में पहचान करना बहुत ही मुस्किल होता है। असली मावा थोड़ा ऑयली और दानेदार होता है, उसमें से घी की महक आती है। जबकि मिलावटी मावे को हथेलियों पर रगड़ने से उसमें से केमिकल की गंध आती है। मावे के असली नकली होने का पता आप उसे सूंघकर भी लगा सकते हैं। असली मावे से दूध की खुशबू आती है जबकि नकली मावा काफी हद तक स्मेल फ्री होता है। वह लोग पीला आयोडिन टिंचर मिला कर मावे की पहचाना करते हैं।

पीला आयोडिन टींचर एक पल में बता देता है असली नकली मावें में फर्क 
वैसे तो मावे की पहचान कई तरीको से होती है। लेकिन दुकानदार इसकी पहचान पीला आयोडिन टींचर मिला कर करते है। पीले आयोडिन टींचर की बूंद को थोड़े से मावे में मिला कर मावे का रंग पीला होने लगता है। अगर मावे में मिलावट होती है तो मावा काला पड़ जाता है। मावा काला पड़ने का मतलब मावे में आलू या मैदा आदि मिला हुआ है। अगर रंग पीला पड़ता है तो मावा पास हो जाता है। 

मार्केट में आई पचास फीसदी की कमी 
शहर की खोया मंडी में मावा बदायूं से लेकर शाहजहांपुर से मावा आ रहा है। शहर के बल्लिया, दातागंज, भमोरा, गौसगंज, समरेड़, बनारा, गिलौरी,कटका, त्रिकुनिया, झंझरी, मिलक, कीरतपुर, व शाहजहापुर के गढ़िया रंगीन आदि से मावा आता है। लेकिन अब शहर के कई हलवाई गांव से ही खोया खरीद कर ले जाते हैं। जिस कारण मावा मंडी में पचास फीसदी भी मावा नहीं आ रहा है।

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