स्पष्टीकरण न दे पाने की स्थिति में अपराधी को राहत नहीं :हाई कोर्ट 

स्पष्टीकरण न दे पाने की स्थिति में अपराधी को राहत नहीं :हाई कोर्ट 

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक हत्यारोपी की जेल अपील को खारिज करते हुए अपने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि जिस पर पत्नी की हत्या का आरोप है, उसके खिलाफ अभियोजन अपराध सिद्ध करने में सफल हुआ है और गवाहों द्वारा यह स्पष्ट होता है कि अपराध घटित होने से कुछ समय पहले दोनों साथ देखे गए थे। इसके अलावा घर में एक साथ रहने के बाद भी आरोपी पत्नी की चोटों के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दे पता है तो यह मजबूत परिस्थितियां उसे अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराती हैं। इसके साथ ही कोर्ट भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 के तहत बच्चों की गवाही के आधार पर भी आरोपी को दोषी पाती है। 

वर्तमान मामले में कोर्ट ने पाया कि उक्त अधिनियम में बाल गवाह भी शामिल हैं। एक बच्चे की गवाही तथ्यों और परिस्थितियों के साथ-साथ साक्ष्य और उसकी विश्वसनीयता पर निर्भर होती है। बच्चों की गवाही को अन्य साक्ष्यों से पुष्ट करने के बाद उसे विश्वसनीय मान लिया जाता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की खंडपीठ ने उस्मान की जेल अपील को खारिज करते हुए पारित किया। वर्तमान अपील जिला एवं सत्र न्यायाधीश, बिजनौर के आदेश से व्यथित होकर दाखिल की गई थी, जिसमें आईपीसी की धारा 302 के तहत आरोपी को दोषी ठहराया गया था और 20 हजार रुपए के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

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