Kanpur: गर्भवती को हुई प्रसव पीड़ा; अनजान महिलाओं ने धोती व शाल का पर्दा बनाकर कराया प्रसव...पति के छलके आंसू... जानें मामला

Kanpur: गर्भवती को हुई प्रसव पीड़ा; अनजान महिलाओं ने धोती व शाल का पर्दा बनाकर कराया प्रसव...पति के छलके आंसू... जानें मामला

कानपुर, अमृत विचार। रिश्तेदारी से अपने गांव जाने के लिए पति के साथ निकली गर्भवती महिला को रास्ते में ही प्रसव पीड़ा होने लगी। आसपास मौजूद महिलाओं ने उसकी हालत देखी तो फौरन मौके पर पहुंचीं और धोती-शाल का पर्दा बनाकर प्रसव कराया। इसके बाद चारपाई पर लिटाकर उसे रिश्तेदार के घर पहुंचाया। 

घाटमपुर क्षेत्र के बेंदा गांव का रहने वाला करन संखवार अपनी पत्नी बबली देवी के साथ शनिवार को दहेली गांव निवाली अपने साढ़ू कैलाश संखवार के घर आया था। बबली गर्भवती थी। अपनी बहन के घर रात भर रुकने के बाद बबली रविवार को अपने पति के साथ अपने गांव बेंदा लौट रही थी। दहेली गांव घाटमपुर-मूसानगर रोड से करीब 800 मीटर दूर है। दोनों लोग गांव से पैदल ही निकले थे और मूसानगर रोड पर पहुंचकर सवारी गाड़ी का इंतजार कर रहे थे।

बताया जाता है कि गांव से पैदल चलकर मेन रोड के दहेली चौराहे पहुंचने के बाद बबली को प्रसव पीड़ा होने लगी। उस समय वहां कोई महिला भी नहीं थी। परेशान पति करन ने चौराहे पर स्थित शराब ठेका के मालिक से मदद मांगी। शराब ठेकेदार ने उसकी हालत देखते हुए रास्ते से गुजर रही कुछ महिलाओं को रोका। 

पास के ही दिल्ली गांव से कुछ महिलाएं और कुछ राहगीर महिलाओं ने मदद को हाथ बढ़ाया। बुजुर्ग महिलाओं ने अपनी धोती और शाल का पर्दा बनाकर प्रसव कराया। बुजुर्ग महिलाओं ने प्रसव कराया। प्रसव के दौरान उसे बेटी पैदा हुई, जो पूरी तरह स्वस्थ है।

इस बीच प्रसव की खबर रिश्तेदारी में पहुंची तो बहन के साथ पड़ोस की कुछ महिलाएं भी वहां पहुंच गईं। एंबुलेंस का इंतजाम नहीं होने पर घर ले जाने की समस्या थी। बहनोई कैलाश संखवार ने दिल्ली गांव से एक चारपाई मंगवाई। इसके बाद बबली और उसकी बेटी को चारपाई पर लिटाकर फिर दहेली गांव बहनोई के घर पहुंचाया गया। बहनोई कैलाश संखवार के मुताबिक प्रसव के बाद जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं।

इंसानियत देख पति के छलक पड़े आंसू

खुली सड़क पर पत्नी को प्रसव पीड़ा होने से पति करन संखवार खासा परेशान था। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे, लेकिन अजनबी महिलाओं की इंसानियत देखकर उसकी आंखों में आंसू छलक आए। सुरक्षित प्रसव के बाद वह उन महिलाओं को शुक्रिया कहता रहा, जिन्हें वह जानता तक नहीं था। उसका कहना है कि अगर बुजुर्ग महिलाओं ने मदद नहीं की होती तो जच्चा-बच्चा की जान बचानी मुश्किल हो जाती।

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