‍Bareilly News: स्पोटर्स स्टेडियम में मिला यूज्ड सीरिंज का ढेर, आखिर यहां चल क्या रहा था?

स्टेडियम प्रशासन में फैली सनसनी, युवा कल्याण विभाग की प्रतियोगिता के दौरान इस्तेमाल किए जाने की आशंका

‍Bareilly News: स्पोटर्स स्टेडियम में मिला यूज्ड सीरिंज का ढेर, आखिर यहां चल क्या रहा था?

बरेली, अमृत विचार। खिलाड़ी अब जिला और मंडलस्तर की प्रतियोगिताओं में भी नशे का सहारा ले रहे हैं। रविवार को इसकी पुष्टि तब हुई जब स्पोटर्स स्टेडियम ग्राउंड के टॉयलेट के बाहर सीरिंज का ढेर मिला। इससे सनसनी फैल गई। यह तो पता नहीं लग पाया कि इनका इस्तेमाल कब और किसने किया लेकिन माना गया कि हाल ही में यहां हुईं प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों ने ही इसका इस्तेमाल किया होगा। ज्यादा आशंका इस बात की है कि हाल ही में हुई युवा कल्याण विभाग की ओर से आयोजित प्रतियोगिता के दौरान खिलाड़ियों ने नशे के इंजेक्शनों का इस्तेमाल किया गया होगा।

स्टेडियम ग्राउंड के पास टॉयलेट के बाहर रविवार को दर्जन भर से ज्यादा .5 मिलीलीटर की टूटी हुई सीरिंज मिलीं। डॉक्टरों के मुताबिक स्टेरॉयड लेने के लिए खिलाड़ी इसी सीरिंज का इस्तेमाल करते हैं। सीरिंज मिलने के बाद काफी छानबीन की गई लेकिन कोई ऐसा चश्मदीद नहीं मिला, जिसने किसी को उनका इस्तेमाल करते देखा हो। इसके बाद इन सीरिंज का इस्तेमाल स्टेडियम में आठ और नौ फरवरी को युवा कल्याण विभाग की ओर से आयोजित जोन स्तरीय ग्रामीण खेल प्रतियोगिताओं के दौरान किए जाने की आशंका जताई गई। इस प्रतियोगिता में दो मंडल के नौ जिलों के 15 सौ से ज्यादा खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था।

स्टेडियम प्रशासन का कहना है कि इससे पहले स्टेडियम में जो प्रतियोगिताएं हुईं हैं, वह जूनियर या सबजूनियर स्तर की थीं। उनमें खिलाड़ियों के नशा लेने की संभावना पर यकीन नहीं किया जा सकता। आशंका यही है कि युवा कल्याण विभाग की प्रतियोगिता में आए सीनियर खिलाड़ियों ने नशे का इस्तेमाल किया होगा। इन सीनियर खिलाड़ियों को अब 21 से 23 फरवरी तक लखनऊ में राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेना है।

सिर्फ राष्ट्रीय खेलों में ही होता है डोप टेस्ट
जिला एथलेक्टिक संघ के सचिव साहिबे आलम ने बताया कि एक खिलाड़ी के डोपिंग टेस्ट में करीब दो हजार रुपये का खर्च आता है। इस वजह से सिर्फ राष्ट्रीय खेलों में डोप टेस्ट अनिवार्य है। राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में अभी डोप टेस्ट नहीं कराया जाता। खिलाड़ियों की ओर से क्षमता बढ़ाने के लिए नैन्ड्रोलसोल्ड, स्टेनाजोल, आइब्रुफेन जैसी दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। ज्यादातर ऐसी दवाएं एथलीट या फुटबॉल, कुश्ती और वेट लिफ्टिंग के खिलाड़ी इस्तेमाल करते हैं।

हेपेटाइटिस, एचआईवी जैसी बीमारियों का खतरा
जिला अस्पताल के मन कक्ष के प्रभारी डॉ. आशीष कुमार ने बताया कि कई बार ऐसी दवाइयां प्रतिबंधित होने के साथ ही महंगी भी होती है। खिलाड़ी .5 मिलीलीटर तक की ही डोज लेते हैं। खिलाड़ियों के एक ही इंजेक्शन से डोज लेने से हेपेटाइटिस, एचआईवी जैसी कई घातक बीमारियों के शिकार होने का खतरा रहता है।

स्टेडियम के शौचालय के पास सीरिंज मिली हैं। आशंका है कि पिछले दिनों युवा कल्याण विभाग की ओर से आयोजित प्रतियोगिता में दूरदराज से आए खिलाड़ियों ने इनका प्रयोग किया होगा। स्टेडियम प्रबंधन की ओर से लगातार खिलाड़ियों को डोपिंग के लिए जागरूक किया जाता है। - जितेंद्र यादव, क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी

हमारी प्रतियोगिता में डोपिंग की कोई शिकायत नहीं मिली। राज्यस्तर से जारी गाइड लाइन में डोप टेस्ट के निर्देश नहीं थे फिर भी प्रतियोगिता के दौरान विभागीय कर्मचारी सतर्क रहे। अगर खिलाड़ी प्रतिबंधित दवाओं का प्रयोग कर रहे हैं तो उन्हें इसे बंद करना चाहिए। - विवेक श्रीवास्तव, जिला युवा कल्याण अधिकारी

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