MOU पर हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी, कहा- आईसीएआर और विश्वविद्यालय के बीच हुए समझौते में सरकार नहीं कर सकती हस्तक्षेप

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एमओयू (एक समझौता ज्ञापन) में राज्य सरकार के हस्तक्षेप पर आपत्ति जताते हुए स्पष्ट किया कि एक स्वायत्त निकाय किसी कानून, केंद्र या राज्य सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत एक स्वतंत्र निकाय होता है। स्वायत्त निकाय का अपना प्रशासन और प्रबंधन होता है।
एक स्वायत्त निकाय एमओयू पर हस्ताक्षर करके किसी अन्य संस्था के साथ समझौता कर सकता है और फिर यह समझौता ज्ञापन ही उस क्षेत्र को नियंत्रित करता है, जिसके लिए उस पर हस्ताक्षर किए गए हैं। ऐसे में सरकार समझौते के तहत नियुक्त कर्मचारियों की सेवा शर्तों के मामले में कुछ नहीं कर सकती है।
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ एक स्वायत्त निकाय है, अगर इसके तत्वाधान में संचालित कृषि विज्ञान केन्द्रों में नियुक्त कर्मचारियों को सभी एकेडमिक लाभ, सुविधाएं और अन्य सेवा लाभ जैसे सेवानिवृत्ति की आयु और सत्र लाभ प्रदान किया जाता है, जिनके लिए राज्य सरकार द्वारा कोई बजट देय नहीं होता है तो राज्य सरकार ऐसे लाभों को वापस लेने के लिए विश्वविद्यालय को मजबूर नहीं कर सकती है और अगर सरकार ऐसा करती है तो यह उनकी स्वायत्तता में सेंध लगाकर उन्हें अधीनस्थ बनाने का एक प्रयास है जो अक्षम्य है।
उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति अजीत कुमार की एकलपीठ ने डॉक्टर अनिल कुमार कटियार और अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित की। मालूम हो कि याचियों का वैज्ञानिक/अनुसंधान सहयोगी/ विषयवस्तु विशेषज्ञ के पद पर चयन और नियुक्ति हुई थी। बता दें कि आईसीएआर कृषि विज्ञान केंद्रों और संबंधित कृषि विश्वविद्यालयों को चलाने के लिए बजट प्रदान करता है। कृषि विश्वविद्यालय और आईसीएआर के बीच एक समझौता हुआ था।
राज्य सरकार इस समझौते में पक्षकार नहीं थी, फिर भी उसने एमओयू के नियमों और शर्तों के उल्लंघन के लिए विश्वविद्यालय के खिलाफ कार्यवाही के आदेश दिए। राज्य सरकार द्वारा आईसीएआर तथा विश्वविद्यालय दोनों स्वायत्त निकायों के बीच एमओयू के मामले में हस्तक्षेप गलत है और यह शक्ति का मनमाना प्रयोग माना जाएगा।
अंत में कोर्ट ने याचियों को विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर,एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के समान सेवानिवृत्ति की आयु का लाभ देने के साथ-साथ अन्य सभी परिणामी लाभों का हकदार माना। इसके साथ ही याचियों को 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त करने के आदेश को रद्द करते हुए उनकी सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष कर दिया।
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