पीलीभीत: नेताजी के दावों में गुजर गए 13 साल, मिल बंद होने से पस्त बाजार, व्यापारी भी कर रहे पलायन

पीलीभीत: नेताजी के दावों में गुजर गए 13 साल, मिल बंद होने से पस्त बाजार, व्यापारी भी कर रहे पलायन

पीलीभीत, अमृत विचार। चीनी मिल मझोला को बंद हुए करीब 13 साल पूरे हो चुके हैं। इस एक दशक से अधिक समय में मिल के कर्मचारियों के परिवार तो पलायन कर ही गए थे।

इसका सबसे बड़ा असर उत्तराखंड सीमा पर बसे कस्बा मझोला के बाजार पर पड़ा। जो बाजार मिल के पेराई सत्र में दिवाली की तरह गुलजार रहता था। वह घट-घटकर अब 20 से 30 प्रतिशत ही बचा है।  70 प्रतिशत बाजार सिमट चुका है। तमाम व्यापारी अपने प्रतिष्ठान बंद कर गए तो कई बंदी की कगार पर पहुंच चुके हैं। व्यापारियों को भी मिल बंद होने से पलायन करना पड़ा। अभी आगे की तस्वीर भी व्यापारियों की मानें तो कोई खास बेहतर नहीं है।

नगर पंचायत गुलड़िया भिंडारा (मझोला) की चीनी मिल वैसे तो 2009-10 में बंद हो गई थी। इसके बाद से मिल को चालू कराने के लिए आंदोलन और आश्वासन के सिवा धरातल पर कोई काम नहीं हो सका है। चुनाव नजदीक आए तो मुद्दा गरमाया और फिर ठंडे बस्ते में चला गया। यह कहना गलत नहीं होगा कि आगामी लोकसभा चुनाव में भी मझोला क्षेत्र के वोटरों को रिझाने के लिए मिल ही एकमात्र मुद्दा बनकर राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ाएगी। 

खैर, बात विकास और व्यापार से जोड़कर की जाए तो भी स्थानीय लोगों के अनुसार क्षेत्र को बड़ा नुकसान पहुंचा। बताते हैं कि जब चीनी मिल चला करती थी तो करीब पांच हजार से अधिक ग्राहक तो बाजार तो मिल कर्मचारियों के परिवार से ही मिल जाया करते थे।इसके अलावा ट्रांसपोर्टरों , किसानों एवं बाहरी इलाकों से आने वालों से भी अच्छी ग्राहकी थी। 

बाजार पेराई सत्र में तो त्योहारी सीजन की तरह उछाल मारा करता था। मगर मिल बंद होने के बाद हालात बिगड़ते चले गए। तेरह साल में बाजार सिमटकर उस दौर का 20 -30 प्रतिशत भी मुश्किल से बचा है। ना तो कोई बेहतर शैक्षणिक संस्थान क्षेत्र को मिल सका न ही होटल। व्यापार चौपट हो गया।

कई व्यापारी तो नुकसान की मार झेलने के बाद चले भी गए। बताते हैं कि अभी भी हर साल पांच से दस व्यापारी परिवारों का पलायन जारी है। कई बार की गई मांगों के बाद भी मिल नहीं चली। उम्मीदें टूटती गई और व्यापारियों की युवा पीढ़ी भी यहां कोई बेहतर उपाय नहीं तलाश सकी। जिसके चलते मिल के साथ ही बाजार की रौनक पर भी ताला सा लग गया है।

बाजार की मंदी के पीछे ये भी मुख्य वजह
मझोला के ही तमाम व्यापारियों की मानें तो मिल की बंदी के बाद कस्बे के बाजार की मंदी की खास वजह भी है। कस्बे के एक तरफ जंगल का इलाका है। दूसरी तरफ जोशी कॉलोनी का बाजार, तीसरी तरफ न्यूरिया का बाजार और चौथी तरफ उत्तराखंड के खटीमा-सत्रह मील का बाजार तेजी से बढ़ा। मिल चलती थी तो लोग आया करते थे। मगर अब ये सभी अन्य बाजारों के ग्राहक बनकर रह गए। मझोला के व्यापारियों की दुकानदारी ठप पड़ गई।

बोले - हर साल व्यापारी कर रहे पलायन
मिल बंद होने से मझोला का बाजार 80 प्रतिशत तक कम हो गया। मिल चलती थी तो वोट साढ़े छह हजार के आसपास थे, जोकि अब चार हजार रह गए। व्यापारी भी पलायन कर रहे है, वह  भी हर साल। नई पीढ़ी कोई व्यापार शुरू करे तो स्कोप नहीं बचा। नगर पंचायत कहने को है, हालात ग्राम पंचायत से बदतर है। - कपिल अग्रवाल, प्रदेश अध्यक्ष, उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल (युवा)

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