SC: सत्तारूढ़ दल पर चुनावी लाभ के लिए लोक सेवकों का इस्तेमाल के आरोप का याचिका खारिज

SC: सत्तारूढ़ दल पर चुनावी लाभ के लिए लोक सेवकों का इस्तेमाल के आरोप का याचिका खारिज

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने रक्षा लेखा महानियंत्रक द्वारा जारी पत्र और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के उस कार्यालय ज्ञापन को रद्द करने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करने से मंगलवार को इंकार कर दिया जिसमें ‘‘सरकार की उपलब्धियों को दर्शाने के लिए लोकसेवकों का इस्तेमाल करने की मांग की गई है।’’

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न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने वकील प्रशांत भूषण की दलीलों पर गौर किया और कहा कि वह ‘‘प्रचार हित याचिका’’ पर सुनवाई करने की इच्छुक नहीं है। भूषण ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है जिसमें सत्तारूढ़ दल आगामी चुनावों में लाभ पाने के उद्देश्य से अपने काम के प्रचार के लिए लोक सेवकों का कथित तौर पर उपयोग करना चाहता है।

पीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करने को लेकर अनिच्छा जताई। अपनी व्यवस्था में पीठ ने कहा, ‘‘याचिका वापस ली गई मानकर खारिज की जाती है, लेकिन याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय का रुख करने की छूट है।’’ ई ए एस शर्मा और जगदीप एस छोकर द्वारा दायर जनहित याचिका में रक्षा मंत्रालय के रक्षा लेखा महानियंत्रक द्वारा नौ अक्टूबर, 2023 को ‘‘विभिन्न क्षेत्रों के रक्षा लेखा नियंत्रकों को’’ लिखे पत्र को रद्द करने का अनुरोध किया गया था।

याचिका के अनुसार, इस पत्र की विषयवस्तु ‘‘रक्षा मंत्रालय में किए गए/किए जा रहे अच्छे कार्यों को प्रदर्शित करने के लिए सेल्फी-प्वाइंट बनाना’’ था, जिसमें अनुरोध किया गया था कि ‘‘लक्ष्य के अनुसार सभी सेल्फी प्वाइंट ‘तुरंत’ स्थापित किए जाएं और इस संबंधी कार्रवाई रिपोर्ट को ‘तुरंत’ उक्त कार्यालय भेजा जाए ताकि इसे मंत्रालय को आगे भेजा जा सके ।’’

जनहित याचिका में केंद्र सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के 17 अक्टूबर, 2023 के कार्यालय ज्ञापन पर भी निशाना साधा गया। इसमें कहा गया कि डीओपीटी ने 20 नवंबर, 2023 से 25 जनवरी, 2024 तक पूरे देश में प्रस्तावित ‘भारत संकल्प यात्रा’ के माध्यम से भारत सरकार के पिछले नौ वर्ष की उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए सरकार के संयुक्त सचिवों/निदेशकों/उप सचिवों को ‘जिला रथप्रभारी’ के रूप में तैनात करने का निर्णय लिया।

रक्षा लेखा महानियंत्रक द्वारा जारी पत्र और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के कार्यालय ज्ञापन को रद्द करने के साथ साथ जनहित याचिका में यह घोषणा किए जाने का भी अनुरोध किया गया था कि केंद्र या राज्य में सत्तारूढ़ कोई भी राजनीतिक दल अपने लाभ के लिए किसी भी लोक सेवक का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस्तेमाल नहीं कर सकेगा।

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