पुरोहित बनीं संध्या व सुमित्रा, संस्कृत के सहारे चल रही दोनों की आजीविका, जिलों में कराती हैं यज्ञ-अनुष्ठान

पुरोहित बनीं संध्या व सुमित्रा, संस्कृत के सहारे चल रही दोनों की आजीविका, जिलों में कराती हैं यज्ञ-अनुष्ठान

प्रयागराज। देववाणी संस्कृत एक भाषा ही नहीं बल्कि एक अनमोल रत्न के समान है। यह हमारे समाज में संस्कार और संस्कृति भी है। यह पूर्वजों व देवताओं की भाषा है। संस्कृत भाषा को जननी भी माना गया है। चार वेदों की रचना भी देवताओं ने संस्कृत से ही की थी। इसलिए इसे देववाणी भी कहते हैं।

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संस्कृत पढ़ने और उसके उच्चारण पर सिर्फ पुरुष पुरोहितों का ज्यादा अधिकार माना गया है, लेकिन बदलते समय, समाज और जरूरतों और शिक्षा के बदलते स्वरुप में प्रयागराज की कुछ महिलाएं अपनी आजीविका का संसाधन इस संस्कृत भाषा को बना लिया है। महिलाओं ने  पुरोहित का कार्य दक्षता के साथ शुरु किया है। 

चौक की रहने वाली आचार्य संध्या आर्या और सुलेमसराय की सुमित्रा आर्या। दोनों महिलाएं न केवल पूजा-पाठ, विवाह संस्कार, वास्तु शांति पाठ, उपनयन, श्राद्ध कराती हैं, बल्कि वैदिक यज्ञ, अनुष्ठान भी कराती हैं, जो अन्य महिलाओं के लिए आज प्रेरणास्रोत बन गया है। 

पुरोहित आचार्य संध्या आर्या ने कानपुर से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की है। संस्कृत में एमए करने के बाद विविध वैदिक यज्ञों के विधान से संबंधित विषय पर शोध भी किया है। वह आर्य समाज चौक में आयोजित होने वाले यज्ञ, अनुष्ठान को वैदिक मंत्रोच्चार के साथ विधिविधान से संपन्न कराती हैं। यज्ञ में आहुतियां डालते समय 19 मंत्रों का स्वर में उच्चारण करती हैं।

आर्या का मानना है कि वेद आध्यात्मिकता का मूल है। वैदिक ज्ञान हमारे विचारों को पंख देते हैं। आर्या प्रयागराज के अलावा हरिद्वार में आयोजित होने वाले वैदिक यज्ञ को संपन्न कराने के लिए जाती हैं। संस्कृत की विरासत को सहेजने के आर्या की बेटी सुकृति पाणिनी कन्या गुरुकुल वाराणसी में शिक्षा प्राप्त कर रही है। वे महिलाओं को रूढि़वादी विचारों के प्रति जागरूक कर रही हैं। आचार्य संध्या आर्या की तरह सुलेमसराय की रहने वाली सुमित्रा आर्या भी पुरोहित में दक्ष हैं।

ज्यादातर वैदिक अनुष्ठानों के आयोजन में दोनों साथ में जाती हैं। सुमित्रा ने पाणिनी कन्या गुरुकुल वाराणसी से शास्त्री किया है। दोनों समवेत स्वर में एक साथ मंत्रो का उच्चारण करती हैं। सुमित्रा पुरोहित को वह सम्मानीय क्षेत्र मानती हैं। 

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