लखनऊ : चेहरे पर मुस्कान लाने वाले प्रो. टिक्कू अब राजनीति के मैदान में कर सकते हैं विरोधियों के दांत खट्टे
केजीएमयू में कंजर्वेटिव डेंटेस्ट्री एंड एंडोडोंटिक्स विभाग के विभागाध्यक्ष हैं प्रो. टिक्कू
मरीजों का भरोसा जीत कर तय किया कामयाबी का सफर
अधिकांश मरीज टिक्कू के नाम से ही दंत विभाग की लाइन में लगने को तैयार
लखनऊ, अमृत विचार। हजारों चेहरों पर खूबसूरत मुस्कान के कारण बने प्रो. एपी टिक्कू सेवानिवृत्त होने के बाद राजनीति के मैदान में उतरने की तैयारी में है। अब देखना यह है कि वह किस पार्टी में शामिल होंगे और किन विरोधियों के दांत खट्टे करेंगे। हालांकि वह सेवानिवृत्त होने के बाद और राजनीति में जाने से पहले कुछ समय तक राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग में काम करने की मंशा भी जता चुके हैं। किंगजार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के फैकल्टी ऑफ डेंटल साइंस के पूर्व डीन और कंजर्वेटिव डेंटेस्ट्री एंड एंडोडोंटिक्स विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.एपी टिक्कू आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। सिर्फ डॉक्टर होने के कारण ही वह प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि साफ नीयत और नेक इरादे के चलते वह लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं।
इरादे नेक हों और नीयत साफ तो कामयाब होने से कोई रोक नहीं सकता है। यह पंक्तियां प्रो.एपी टिक्कू पर सटीक बैठती हैं। वह स्वयं भी इन पंक्तियों को अपने जीवन का ध्येय वाक्य मानते हैं और कहते हैं करुणा, दया और साफ नियत जीवन में सुख और समृद्धि के लिए बहुत जरूरी है। प्रो.एपी टिक्कू उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में दंत चिकित्सा के क्षेत्र में सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित लोगों में से एक हैं। वह खुद भी मानते हैं कि यह मुकाम उन्होंने केजीएमयू में गरीबों और जरूरतमंदों की सेवाकर पाया है। वह मौजूदा समय में डेंटल साइंस के क्षेत्र में काम कर रहे डॉक्टरों के लिए कहते हैं कि मरीजों का भरोसा बनाये रखें। प्रो.एपी टिक्कू इसी साल दिसम्बर में सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
डॉ.टीएन.चावला ने दिखाई राह
प्रो.एपी टिक्कू ने करीब 45 साल पहले 1978 में जिस केजीएमसी में बीडीएस की पढ़ाई शुरू की थी, आज वहीं पर प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। केजीएमसी अब चिकित्सा विश्वविद्यालय बन चुका है। इतना ही नहीं दंत चिकित्सा के क्षेत्र में केजीएमयू पिछले 70 सालों से लगातार भारत के टॉप पांच संस्थानों में शामिल है। इसका श्रेय प्रो.एपी टिक्कू अपने शिक्षकों को देते हैं। वह बताते हैं कि लखनऊ के काल्विन तालुकेदार से साल 1976 में इंटर पास करने के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय में बीएससी करने लगे। इसी बीच पड़ोस में रहने वाले डॉ.टीएन.चावला जो उस समय में केजीएमसी स्थित दंत संकाय के हेड की जिम्मेदारी निभा रहे थे और डेंटल सर्जन के तौर पर विख्यात थे।
प्रो.एपी टिक्कू बताते हैं कि उस दौर में डेंटेस्ट्री का बहुत अधिक महत्व नहीं था, लेकिन डॉ.टीएन.चावला के कहने पर बीडीएस के लिए परीक्षा दी, एमबीबीएस के लिए परीक्षा ही नहीं दी, क्योंकि डॉ.टीएन चावला ने उस समय कहा था कि आने वाले 40 साल डेंटेस्ट्री के लिए बहुत ही उज्जवल है। आज उनकी बात सच साबित हो रही है।
तब भी थी चुनौती और आज भी
प्रो.एपी.टिक्कू मानते हैं कि जिस दौर में हमलोगों ने डेंटेस्ट्री के क्षेत्र में कदम रखा उस समय चुनौतियां अलग तरह की थीं, लेकिन आज की चुनौतियां अलग क्षेत्र की हैं। वह बताते हैं कि उस समय में दांतों के इलाज में इस्तेमाल होने वाले उपकरण और सामान विदेश में मिलते थे, जिनका भारत आना मुश्किल था, पैर से मशीन चलानी पड़ती थी, लेकिन आज केजीएमयू में उच्चगुणवत्ता के उपकरण और अन्य सामान पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। विदेशाों से 50 गुना अधिक काम भी हो रहा है, लेकिन अब चुनौतियां अलग हैं तब एक कॉलेज हुआ करता था, आज प्रदेश में करीब 26 से ज्यादा डेंटल कॉलेज है,पूरे देश में 300 कॉलेज हैं। ऐसे में दंत चिकित्सकों को प्रेक्टिस,शोध और टीचिंग के लिए उचित जगह नहीं मिल पा रही है।
इलाज कराने आये स्कूल टीचर ने दी सीख
प्रो.टिक्कू शुरुआती दिनों को याद करते हुये बताते हैं कि एक व्यक्ति इलाज के लिए दंत विभाग में आया था, उस सामान्य से दिखाने वाले व्यक्ति ने ऐसी सीख दी, कि उससे जीवन ही बदल गया। उन्होंने बताया कि उस व्यक्ति को इलाज में कुछ समस्या आ रही थी, मैने उसकी हालत को देखा और उस शख्स की मदद कर दी। इलाज मिलने के बाद उस शख्स ने बताया कि वह एक सरकारी स्कूल का टीचर है। उस शख्स ने कहा था कि जीवन में आगे बढ़ना है तो गरीब गुरबों की मदद करते रहना। क्योंकि गरीबों की दुआ लगती है, अमीरों की नहीं।
पत्नी को मानते हैं अपने लिये भाग्यशाली
प्रो.टिक्कू पत्नी डॉ. तृप्ती टिक्कू को अपने लिए बेहद ही लकी मानते हैं। प्रो.एपी टिक्कू बताते हैं कि जब वह केजीएमसी में पढ़ रहे थे, उस समय डॉ. तृप्ती भी भी पढ़ाई कर रही थीं और वह डॉ. टिक्कू से जूनियर थीं। साल 1986 की बात है प्रो. टिक्कू को केजीएमसी में डिमान्सटेटर के तौर पर तैनाती मिली थी,लेकिन डॉ. तृप्ती से विवाह होने के महज एक महीने के अन्दर लेक्चरर के तौर पर नियुक्ति मिल गई। डॉ. तृप्ती भी लंबे समय तक केजीएमयू का हिस्सा रहीं।
अच्छा परिवार और बेहतर तालीम ने दिलाई पहचान
डॉ. एपी टिक्कू ने बताया कि उनके दादा और पिता कश्मीर से पहले कानपुर आये और उसके बाद लखनऊ में निवास करने लगे। उन्होंने बताया कि उनके पिता कैप्टन पीपी टिक्कू यूपी फ्लाइंग के इंचार्ज थे। वह बताते है कि संपन्न परिवार में होने की वजह से उन्हें अच्छी शिक्षा मिली और इसी शिक्षा ने आज इस मुकाम पर पहुंचाया है।
जोखिम लेना शौक
प्रो.टिक्कू बताते हैं कि आगे बढ़ने के लिए जोखिम लेना जरूरी है। इसलिए जोखिम लेने से कभी पीछे नहीं हटा क्योंकि, मेरा मानना है कि जो व्यक्ति जोखिम लेने से डर गया वह कभी सफल नहीं हो सकता। वह कहते हैं कि यदि वह डॉक्टर न होते तो वकील होते, मुझे वकील का पेशा अच्छा लगता है। उन्होंने बताया कि मेरा बेटा और बहू दोनों हाईकोर्ट में वकील हैं।
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