दंड प्रक्रिया पर नये विधेयक में जांच के लिए प्रौद्योगिकी की सहायता, मुकदमे में बदलाव का प्रस्ताव
नई दिल्ली। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के स्थान पर लाया जा रहा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) विधेयक न्याय मुहैया कराने वाली प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव करता है, जिसमें भारत और विदेश में घोषित अपराधियों की संपत्तियों की कुर्की तथा कुछ मामलों में व्यक्तियों की गिरफ्तारी के लिए हथकड़ी की अनुमति का प्रावधान शामिल है।
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भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक और भारतीय साक्ष्य (बीएस) विधेयक भी शुक्रवार को लोकसभा में पेश किए गए और वे क्रमश: भारतीय दंड संहिता, 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह लेंगे। प्रस्तावित तीनों विधेयकों को आगे अवलोकन के लिए एक संसदीय समिति के पास भेजा गया है। दंड प्रक्रिया पर विधेयक केंद्र की डिजिटल इंडिया पहल के अनुरूप है और इसका उद्देश्य वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मुकदमे के लिए प्रौद्योगिकी के अधिक से अधिक इस्तेमाल को बढ़ावा देना है।
विधेयक में यह भी प्रस्ताव है कि यौन अपराध और तस्करी जैसे मामलों में किसी सरकारी अधिकारी पर मुकदमा चलाने के लिए किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी। विधेयक में कहा गया है, ‘‘किसी लोक सेवक पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने या अस्वीकार करने का निर्णय अनुरोध प्राप्त होने के 120 दिन के भीतर सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। अगर सरकार ऐसा करने में विफल रहती है तो मंजूरी दे दी गई मानी जाएगी।’’
बीएनएसएस में भारत के साथ शांति स्थापित करने वाले किसी देश की सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के साथ-साथ ऐसे राष्ट्र के क्षेत्र में लूटपाट करने को सात साल तक की जेल की सजा वाला अपराध बनाने के नये प्रावधान हैं।
बीएनएसएस विधेयक की धारा 151 कहती है, ‘‘जो कोई भी भारत सरकार के साथ शांति स्थापित करने वाले किसी राष्ट्र की सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ता है या ऐसे युद्ध छेड़ने का प्रयास करता है, या ऐसे युद्ध छेड़ने के लिए उकसाता है, उसे उम्रकैद की सजा दी जाएगी, या जिसकी अवधि जुर्माने/बिना जुर्माने के सात साल तक बढ़ाई जा सकती है।’’
विदेश में किसी घोषित अपराधी की संपत्ति की कुर्की के प्रावधान में यह कहा गया है कि पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त अदालत में एक आवेदन करेगा और उसके बाद वह अदालत पहचान के लिए संबंधित देश की अदालत या प्राधिकारी से सहायता का अनुरोध करने को लेकर कदम उठाएगी। नये कानून के तहत 90 दिन के भीतर आरोपपत्र दाखिल करना होगा और अदालत स्थिति को देखते हुए एजेंसी की जांच के लिए 90 दिन का समय और बढ़ा सकती है।
निचली अदालत द्वारा सुनवाई समाप्त होने के 30 दिनों के भीतर फैसला सुनाया जाना चाहिए। हथकड़ी के इस्तेमाल पर, इसमें कहा गया है कि पुलिस अधिकारी, अपराध की प्रकृति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय हथकड़ी का प्रयोग कर सकते हैं जो आदतन अपराधी है या जो हिरासत से भाग गया हो।
इसमें संगठित अपराध, आतंकवादी कृत्य का अपराध, नशीली दवाओं से संबंधित अपराध या हथियारों और गोला-बारूद रखने का अपराध, हत्या, बलात्कार, तेजाब हमला, सिक्कों और मुद्रा नोटों की जालसाजी का अपराध शामिल हैं। इसके अलावा मानव तस्करी, बच्चों के खिलाफ यौन अपराध, राष्ट्र के खिलाफ अपराध, जिसमें भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य या आर्थिक अपराध शामिल हैं।
विधेयक में मजिस्ट्रेट के लिए प्रावधान है कि वह किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किए बिना जांच के लिए अपने हस्ताक्षर, लिखावट, आवाज या उंगलियों के निशान के नमूने देने का आदेश दे सकता है। पुलिस द्वारा हिरासत में लेने के संबंध में विधेयक में प्रावधान है कि पुलिस दंडात्मक कार्रवाई के तहत दिए गए निर्देशों का विरोध करने, इनकार करने या अनदेखी करने वाले किसी भी व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है।
नये विधेयक के अनुसार, अपराध के आरोपी व्यक्ति पर उसकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया जा सकता है और उसे दोषी ठहराया जा सकता है। बीएनएसएस विधेयक किसी अपराध की जांच, प्राथमिकी दर्ज करने और इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से समन भेजने के मामलों में प्रौद्योगिकी और फॉरेंसिक विज्ञान के इस्तेमाल का प्रावधान करता है।
विधेयक में प्रावधान है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट मुहैया कराने के लिए नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया जाएगा और पीड़ितों को डिजिटल माध्यम सहित मामले की प्रगति के बारे में सूचित किया जाएगा तथा वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई की सुविधा प्रदान की जाएगी। मामले वापस लिये जाने के संबंध में विधेयक में कहा गया है कि यदि सात साल से अधिक की सजा वाला कोई मामला वापस लेना है, तो प्रक्रिया शुरू करने से पहले पीड़ित को सुनवाई का मौका दिया जाएगा।
‘जीरो एफआईआर’ के संबंध में विधेयक का प्रस्ताव है कि नागरिक अधिकार क्षेत्र की बंदिशों के बावजूद किसी भी पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज करा सकते हैं और प्राथमिकी को 15 दिन के भीतर अपराध स्थल पर अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित किया जाना चाहिए। विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुकदमे, अपील की कार्यवाही, लोक सेवकों और पुलिस अधिकारियों सहित बयानों की रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक मोड में की जा सकती है और आरोपी का बयान भी वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से दर्ज किया जा सकता है।
विधेयक के अनुसार, समन, वारंट, दस्तावेज, पुलिस रिपोर्ट, साक्ष्य के बयान इलेक्ट्रॉनिक रूप में किए जा सकते हैं। नये प्रस्तावित कानून में मौत की सजा के मामलों में दया याचिका दायर करने की समय सीमा के लिए प्रक्रिया का प्रावधान है और मृत्युदंड प्राप्त दोषी की याचिका के निपटारे के बारे में जेल अधिकारियों द्वारा सूचित किए जाने के बाद, वह या उसका कानूनी उत्तराधिकारी या रिश्तेदार 30 दिन के भीतर राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दायर कर सकता है।
इसमें कहा गया है कि याचिका खारिज कर दिए जाने पर व्यक्ति 60 दिन के भीतर राष्ट्रपति के पास याचिका दायर कर सकता है और राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं की जाएगी। आपराधिक मामलों में किसी सरकारी अधिकारी पर मुकदमा चलाने की मंजूरी के संबंध में नये कानून में कहा गया है, ‘‘किसी लोक सेवक पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने या अस्वीकार करने का निर्णय सरकार को अनुरोध प्राप्त होने के 120 दिन के भीतर करना होगा।
अगर सरकार ऐसा करने में विफल रहती है, तो मंजूरी दे दी गई मानी जाएगी।’’ इसमें कहा गया है कि यौन अपराध, तस्करी आदि मामलों में किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। सीआरपीसी की जगह लाये जा रहे बीएनएसएस विधेयक में अब 533 धारा हैं, पुराने कानून की 160 धारा बदली गई हैं, नौ नयी धारा जोड़ी गई हैं और नौ धारा निरस्त की गई हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री ने लोकसभा में कहा था कि कानून में एफआईआर से केस डायरी, केस डायरी से आरोप पत्र और आरोप पत्र से फैसले तक की पूरी प्रक्रिया को डिजिटल बनाने का प्रावधान किया गया है। मंत्री ने कहा था कि तलाशी और जब्ती के समय वीडियोग्राफी अनिवार्य कर दी गई है, जो मामले का हिस्सा होगा और इससे निर्दोष नागरिकों को फंसाए जाने से बचाया जा सकेगा।
उन्होंने कहा था कि पुलिस द्वारा ऐसी रिकॉर्डिंग के बिना कोई भी आरोपपत्र मान्य नहीं होगा। उन्होंने कहा था कि आरोपपत्र दाखिल होने पर निचली अदालतें अब 60 दिन के भीतर आरोपी व्यक्ति को आरोप तय करने का नोटिस देने के लिए बाध्य होंगी। अदालत को बहस पूरी होने के 30 दिन के अंदर फैसला देना होगा, इससे फैसला वर्षों तक लंबित नहीं रहेगा और सात दिन के अंदर फैसला ऑनलाइन उपलब्ध कराना होगा।
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