मुरादाबाद: सुप्रीम कोर्ट का आदेश लेकर अलीपुर सेशन कोर्ट पहुंची हसीन जहां, जानें पूरा मामला
आपराधिक पुनरीक्षण और मामले के निस्तारण के दिए हैं आदेश, 2019 से लंबित मामले में कोर्ट ने एक माह में तय की है सुनवाई
मुरादाबाद, अमृत विचार। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी और उनकी पत्नी हसीन जहां का विवाद फिर चर्चा में है। शारीरिक और मानसिक क्रूरता के मामले में हसीन जहां पश्चिम बंगाल के अलीपुर सेशन कोर्ट पहुंच गई हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले में जारी आदेश की प्रति लेकर कोर्ट पहुंची हसीन जहां ने मोहम्मद शमी की मुश्किल बढ़ा दी हैं।
साल 2019 में पारिवारिक विवाद में हसीन जहां ने पश्चिम बंगाल के अलीपुर कोट का दरवाजा खटखटाया था। हसीन ने तब इनके पति मोहम्मद शमी और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत मुकदमा दर्ज कराया था। इस मामले में कोर्ट में उपस्थित हुए शमी के प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करने के बाद कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी वारंट पर रोक लगा दिया था। उस आदेश पर सुनवाई के बाद मोहम्मद शमी की गिरफ्तारी रुक गयी थी। जबकि प्रकरण की सुनवाई भी आगे नहीं बढ़ पाई थी।
मामला अलीपुर के एसीजेएम कोर्ट में लंबित होने के मामले में पिछले महीने मोहम्मद शमी की पत्नी हसीन जहां में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सीजेआई डीवाई चंद्रचूण सहित तीन न्यायमूर्ति की पीठ ने अलीपुर कोर्ट को एक माह के भीतर मामले की अपराधिक पुनरीक्षण और निस्तारण के निर्देश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट से इस आदेश की कॉपी लेने के बाद हसीन जहां अब कोलकाता लौट गई हैं। दूरभाष पर अमृत विचार से बातचीत में हसीन जहां ने कहा कि हमने सेशन कोर्ट में आईपीसी 498-ए मामले के लिए जारी निर्देश की कॉपी प्रस्तुत कर दी है। मुझे उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित की गई समय अवधि के भीतर सेशन कोर्ट सुनवाई पूरी करेगा।
हसीन जहां का कहना है कि चार साल से इस प्रकरण की सुनवाई स्थगित थी। आश्चर्य यह कि कोर्ट ने वर्ष 2019 के सितंबर महीने में केवल मोहम्मद शमी की गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी। लेकिन, कोर्ट में पूरी प्रक्रिया ही रोक दी गयी थी। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से मुझे न्याय मिलने की उम्मीद जगी है। मेरा मानना है कि मेरे साथ इंसाफ होगा और बेटी के साथ मैं अपनी बाकी जीवन के सुकून में गुजार सकूंगी।
क्या है 498-ए का मतलब?
अगर किसी शादीशुदा महिला पर उसके पति या उसके ससुराल वालों की ओर से किसी तरह की 'क्रूरता' की जा रही है तो आईपीसी की धारा 498-ए के तहत ये अपराध के दायरे में आता है। क्रूरता, शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की हो सकती है।
धारा 498-ए के तहत अपराध को गंभीर माना गया है। इसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल की सजा तक का प्रावधान है। अगर शादीशुदा महिला की मौत शादी के सात साल के दौरान हो जाती है और जब तक यह साबित न हो जाए कि मौत किस वजह से हुई है? तो यह मानकर चला जाता है कि मौत संदिग्ध हालत में हुई है। यह मामला पुलिस आईपीसी की धारा 498-ए/302/304-बी के तहत केस दर्ज करती है- नचिकता वाजपेयी, अधिवक्ता हसीन जहां (सुप्रीम कोर्ट)।
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