दिल्ली हाईकोर्ट ने जिला न्यायाधीशों को डिजिटलीकरण के लिए मुकदमों की सूची तैयार करने का दिया निर्देश
नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने यहां के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को उन जिला अदालतों के मामलों की प्रकृति या रिकॉर्ड की एक सूची बनाने का निर्देश दिया है जिन्हें डिजिटलीकरण के लिए प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पुराने रिकॉर्ड को हटाने से पहले हर छोटे या सामान्य मामले का डिजिटलीकरण करना अनिवार्य नहीं है।
न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने एक आदेश में कहा, प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश (मुख्यालय) अन्य सभी प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीशों तथा रिकॉर्ड रूम प्रभारी अधिकारियों (ओआईसी) के परामर्श से उन मामलों की श्रेणी निर्धारित करेंगे जिनमें डिजिटलीकरण की आवश्यकता है और ‘छोटे मामले’ जिन्हें डिजिटलीकरण की आवश्यकता नहीं है।
यह आदेश अदालत की रजिस्ट्री द्वारा जनवरी 2017 के आदेश में कुछ स्पष्टीकरण मांगने के लिए दायर एक अर्जी पर आया। जनवरी 2017 के आदेश में उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि दिल्ली उच्च न्यायालय के नियमों के तहत निचली अदालत के रिकॉर्ड को नष्ट करने से पहले, संबंधित अपीली अदालत से सभी जानकारी मांगी जानी चाहिए कि क्या निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले पर अपील की गई है और यदि हां, तो क्या ऐसी सभी अपील लंबित हैं।
आदेश में कहा गया, ऐसे सभी मामलों में जहां लंबित अपील के संबंध में जवाब मिलते हैं, निचली अदालत के रिकॉर्ड को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए और संरक्षित किया जाना चाहिए। यहां तक कि ऐसे मामलों में भी जहां अपीली अदालत द्वारा कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलती है। आदेश में कहा गया कि निचली अदालत के रिकॉर्ड को नष्ट करने से पहले लंबित अपील को ध्यान में रखते हुए, इसे स्कैन किया जाना चाहिए और डिजिटल रूप में सहेजा जाना चाहिए। हालिया अर्जी पर बहस करते हुए उच्च न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील रजत अनेजा ने कहा कि रिकॉर्ड से छंटनी न किए जाने के कारण उनका ढेर लग रहा है और एक बड़ी समस्या पैदा हो रही है।
अनेजा ने अदालत से सुचारू डिजिटलीकरण के साथ-साथ रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए निर्देश पारित करने का भी आग्रह किया। उच्च न्यायालय की सूचना प्रौद्योगिकी समिति ने 2017 के आदेश में स्पष्टीकरण का अनुरोध किया था। उच्च न्यायालय ने वकील अनेजा और न्यायिक अधिकारी अभिलाष मल्होत्रा, जो वर्तमान में केंद्रीय परियोजना समन्वयक (सीपीसी) के रूप में उच्च न्यायालय में तैनात हैं, की सहायता से कुछ निर्देश पारित किए, जिसमें यह भी शामिल है कि पहले के निर्देश आपराधिक मामलों तक ही सीमित थे, लेकिन अब, वे नागरिक मामलों तक भी विस्तारित हैं।
ये भी पढे़ं- एकनाथ शिंदे ने किया दावा, कहा- विपक्ष अपना नेता तय नहीं कर सका, पीएम मोदी की 2024 में जीत निश्चित