मुरादाबाद : 'जब दिल नहीं मिलते तो हजारों रिश्ते...', आल इंडिया मुशायरे की महफिल ने छोटी कर दी रात
मुरादाबाद, अमृत विचार। जिगर मंच पर आल इंडिया मुशायरे में वो शंकर की तरह विषपान करने का तमन्नाई... के साथ इकबाल अशर ने मुशायरे की शुरुआत की। प्रदर्शनी का प्रारंभ डीआईजी शलभ माथुर और चिकित्सक अनुराग अग्रवाल के दीप दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। मुशायरे की यह महफिल रात छोटी कर गई। शायरों के चाहने वालों की दादा देने वालों की होड़ ने रोमांच पैदा कर दिया। गुरुवार की रात मुशायरे के आयोजन में देश विभिन्न हिस्सों से आए शायरों ने प्रेम, देश भक्ति और समाज को नई दिशा देने के संदेश वाली कलाम पेश किए। निजामत मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने की। अकील नोमानी ने पढ़ा- हर आदमी तस्बीह में दाने की तरह है...। मुमताज नसीम ने सुनाया- मेरी गजल जो उसको अपने नाम से सुनाई है, मेरी निगाह में हुजूर...
डॉ.नदीम शाद ने पढ़ा- सबब तलाश करो, अपने हार जाने का...जबकि,अल्तमश अब्बास ने मैं मुस्लिम हूं तू हिंदू है...पर खूब तालियां बटोरी। नजर बिजनौरी बोले, चलो ये काम करते हैं मोहब्बत...अबरार काशिफ, मुमताज नसीम, इकबाल अशहर, ताहिर फराज, फहमी बदायूनी बदायूं, जिया टोंगवी, नदीम शाद, कशिश वारसी, पापुलर मेरठी, अकील नोमानी, हबीब सोज, कृष्ण कुमार नाज, मोइन शादाब, निकहत अमरोही, सिकंदर गड़बड़, सैयद मोहम्मद हाशिम ने अपने कलाम पेश किये।
जब दिल नहीं मिलते तो हजारों रिश्ते...
मुरादाबााद। प्रसिद्ध शायर मंसूर उस्मानी दिल से जब दिल नहीं मिलते तो हजारों रिश्ते हाथ के हाथ मिलाते मर जाते हैं, सुना कर अपनी बात शुरू करते हैं। बातचीत में कहते हैं कि मुरादाबाद जिगर साहब का शहर है। जन कवि दुष्यंत कुमार का इस मिट्टी से सीधा संबंध है। दुनिया भर में पीतल नगरी के रूप में प्रसिद्ध यह शहर जिगर के नाम से भी जाना जाता है। शायरी की जमानत जनाब जिगर साहब हैं और दस्तकारों की पहचान वाली पीतल नगरी एक दूसरे (जिगर और पीतलनगरी) के पर्याय हैं। वह कहते हैं कि आने वाले दौर के लिए यहां से शायरी की नई पौध भी आ गई है। शायरी के दामन में यहां के सितारे- मोती पिरोए हुए हैं। शायरी की दुनिया में 50 साल का सफर पूरा करने वाले मंसूर उस्मानी निजामत का लंबा तजुर्बा रखते हैं। शायरी इनके रग-रग में बसी है, जो विरासत में मिली है। कहते हैं की शायरी जिंदगी का असल पैमाना होती है। शायरी हमारे समाज की नूर है।
जज्बात का अचानक छलक जाना भी शायरी
मुरादाबााद। मुशायरों की दुनिया में चार दशक का फलसफा रखने वाले अकील नोमानी कहते हैं कि शायरी की परिभाषा कभी पूरी नहीं हो सकती। कुछ लोग जज्बात के अचानक छलक जाने को शायरी बताते हैं तो कुछ लोग काफिये की जहां पाबंदी हो जाए उसी को शायरी कहते हैं। कुछ रचनाकार मानते हैं कि बेखुदी में निकला कलाम शायरी है। शायरी को लेकर यह भी कहा गया है कि बड़ी से बड़ी बात को कम से कम लफ्जों में सुना देना भी शायरी है। हिंदी, उर्दू, अरबी, अंग्रेजी सहित तमाम भाषाओं में शायरी की अपनी व्याख्या की गई है। नोमानी 1975 से पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। 1980 में सबसे पहली बार बरेली में मंच साझा किया। दिवंगत निदा फाजली, कुमार बाराबंकी, फना निजामी, कमर मुरादाबादी के साथ इनकी शायरी लोगों ने सुनी है। जबकि, मशहूर शायर मुनव्वर राना, प्रो.वसीम बरेलवी सहित प्रमुख रचनाकारों के साथ दुनिया के आठ से अधिक देशों का दौरा कर चुके हैं।
जिसे ऊपर वाला दे दे वही शायरी: फराज
मुरादाबााद। शायर ताहिर फराज शायरी की परिभाषा पूछने पर विस्तार से अपनी राय रखते हैं। कहते हैं कि जिसे ऊपर वाला दे दे उसे ही शायरी का हुनर आता है। शायरी जिंदगी बदल देती है। इंसान बनाती है। शायरी को सुनना, गुनना और जीना पड़ता है, इसे आत्मसात कर लेने से जिंदगी के मायने बदल जाते हैं। शायरी दरअसल ऊपर वाले की सलाहियत की देन है। दो लाइनों में बड़ी से बड़ी बात कह देना शायरी है। जिगर मंच पर आयोजित अखिल भारतीय मुशायरा में हिस्सा लेने आए ताहिर फराज ने अमृत विचार से इस मुद्दे पर विस्तार से बातचीत की। बोले, मैंने 14 साल की उम्र में शायरी की शुरुआत की थी। शायरी की पढ़ाई मेरे घर में हुई। वह कहते हैं कि जिंदगी के हर पहलू में शायरी के अंश छिपे हुए हैं। यह तजुर्बा देखने, सुनने और पढ़ने से आता है। सच तो यह है कि जो बात हमें मुतासिर कर जाए, वही शायरी है। फराज कहते हैं कि यूरोप, अमेरिका, इंग्लैंड, अरब, गल्फ कंट्री, नेपाल और पाकिस्तान में हमें श्रोताओं की मोहब्बत मिली है, जहां जुबान से वाकिफ लोग हैं, वहां उनकी एक आवाज पर अपनी रचनाएं सुनाने पहुंच जाता हूं।
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