यूनेस्को में ‘सोवा रिग्पा’ की विरासत पर चीन के दावे का विरोध करेगा भारत
लेह। भारत पारंपरिक चिकित्सा की सदियों पुरानी बौद्ध पद्धति ‘सोवा रिग्पा’ की विरासत को लेकर संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) में चीन के दावे का दृढ़ता से विरोध करेगा। चिकित्सा की यह बौद्ध पद्धति करीब 2500 वर्ष पहले से भारत में प्रचलित है। भारत ने पिछले वर्ष मार्च में यूनेस्को में ‘अमूर्त …
लेह। भारत पारंपरिक चिकित्सा की सदियों पुरानी बौद्ध पद्धति ‘सोवा रिग्पा’ की विरासत को लेकर संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) में चीन के दावे का दृढ़ता से विरोध करेगा। चिकित्सा की यह बौद्ध पद्धति करीब 2500 वर्ष पहले से भारत में प्रचलित है।
भारत ने पिछले वर्ष मार्च में यूनेस्को में ‘अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ के तहत इस प्राचीन पद्धति की विरासत के संरक्षण के लिए आवेदन किया था। चीन ने पिछले वर्ष दिसंबर में 20 सदस्य देशों के परिषद में भारत के इस प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भारत के दावे पर आपत्ति जाताई थी।
इस दौरान चीन ने अरुणाचल प्रदेश, पूर्वी लद्दाख और भारत-चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की भौगोलिक स्थति को आधार बनाते हुये इस पारंपरिक विरासत पर अपना दावा ठोका था। चीन ने दावा किया था कि पारंपरिक चिकित्सा की इस बौद्ध पद्धति की उत्पत्ति तिब्बत में हुई है।
लेह स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोवा-रिग्पा के निदेशक ने डॉ. पद्म गुरमीत ने कहा, “हमने दावों के समर्थन में पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं। हमने बौद्ध साहित्य का संग्रह भी प्रस्तुत किया है जिसे सोवा-रिग्पा केंद्रीय उत्कृष्टता संस्थान की स्थापना के तुरंत बाद डिजिटल किया जाएगा।”
डॉ. गुरमीत ने बताया कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल इस मामले में विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर काम कर रहे आयुष मंत्रालय की तरफ से उपलब्ध कराये गये विस्तृत दस्तावेज के आधार पर देश के आवेदन पर दृढ़ता से काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष दिसंबर में जमैका में यूनेस्को के प्राचीन विरासत संरक्षण से संबंधित सत्र में इस मुद्दे का समाधान किया जाएगा और चीन के भ्रष्ट एवं दुर्भावनापूर्ण अभियान को विफल किया जायेगा।